Sanyukt kriya , संयुक्त क्रिया के परिभाषा भेद एवं उदाहरण ।

 

Sanyukt kriya, संयुक्त क्रिया के परिभाषा भेद एवं उदाहरण –

संयुक्त क्रिया के परिभाषा – जब दो या दो से अधिक क्रिया का प्रयोग एक साथ किया जाए तो इस प्रकार के क्रिया को संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं या जब कोइ क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मिलने से बनती हैं तो उसे संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं, धातु का सम्बन्ध क्रिया से हैं और जिस मूल शब्द से क्रिया बनती हैं वह धातु कहलाते हैं  जिसे आप क्रिया प्रकरण में विस्तार से पढ़ सकते हैं अभी हम सिर्फ प्रेरणार्थक क्रिया के बारे में बातें करेंगें जिसे हम कुछ उदाहरण से समझते हैं ।

जैसे – वह खेल चूका ।

  श्याम आ गया ।

अभय सो चूका ।

नवीन रोने लगा ।

 रमेश पढ़ चूका आदि इस वाक्यों में खेल चूका, आ गया , सो चूका , रोने लगा संयुक्त क्रिया हैं ।

 

 

Sanyukt kriya  

संयुक्त क्रिया के भेद :

अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के भेद –

1 आरम्भ बोधक 

2 समाप्ति बोधक 

3 अवकाश  बोधक 

4 अनुमति  बोधक 

5 नित्यता बोधक 

6 आवश्यकता  बोधक 

7 निश्चय बोधक 

8 इच्छा बोधक 

9 अभ्यास बोधक 

10 शक्ति बोधक 

 

 

इन्हें भी पढ़ें – 1 क्रिया , क्रिया के कितने भेद होते हैं ।

2 काल किसे कहते हैं भेद एवं उदाहरण ।

 

Sanyukt kriya

व्यख्या – 

1 आरम्भ बोधक – जिन संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरम्भ होने का बोध हो तो वह आरम्भ संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे – खाने लगना , रोने लगना , पढ़ने लगना , हँसने लगना , खेलने लगना , बोलने लगना , नाचने लगना , गाने लगना आदि ।

 

 

2 समाप्ति बोधक – जिन संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता समाप्ति का बोध हो तो वह समाप्ति बोधक क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे – राधा खा चुकी हैं ,रमेश पढ़ चूका हैं , वह गा चूका हैं , श्याम काम कर चूका हैं , नेहा हार चुकी हैं , अंकित सो चूका हैं आदि । धातु के आगे ‘चूकना’ जोड़ने से समाप्ति बोधक संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं ।

 

 

3 अवकाश  बोधक 

जिन क्रिया को निष्पन्न करने के लिए अवकाश का बोध हो तो वह अवकाश बोधक क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे – वह जाने न पाया , रमेश मुश्किल से पढ़ने न पाया , अंकित बोलने न पाया आदि ।

 

4 अनुमति  बोधक 

जिनसे कार्य करने की अनुमति देने का बोध हो तो वह अनुमति बोधक संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे – मुझे जाने दो, अंकित को बोलने दो , श्याम ने हमें बोलने न दिया , अब हमें पढ़ने दो, आदि । ऐसे क्रिया प्रायः देना शब्द से बनती हैं ।

 

5 नित्यता बोधक- जिससे कार्य के नित्यता का बोध हो  अर्थात उसके बंद न होने का भाव प्रकट हो तो वह नित्यता बोधक संयुक्त क्रिया कहा जाता जाएगा ।

जैसे – पानी बहती रही हैं , हवा चलती रही हैं , पेड़ बढ़ता गया , लड़के पढ़ते रहेंगें आदि । 

 

6 आवश्यकता  बोधक- जिससे आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो तो वह आवश्यकता बोधक कहा जाता हैं ।

जैसे – हमें पढ़ना पड़ता हैं , श्याम को काम करना पड़ता हैं , रमेश को बोलना चाहिए , अजय को यह काम करना पड़ता हैं आदि । यहाँ मुख्य क्रिया साथ ‘पढ़ना’ ‘होना’ तथा ‘चाहिए’ क्रिया से आवश्यकता का भाव व्यक्त होता हैं ।

 

 

7 निश्चय बोधक – जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के निशिचता का बोध हो तो वह निश्चय बोधक संयुक्त क्रिया कहे जाते हैं। धातु में उठना , बैठना , आना, जाना , पड़ना, डालना आदि लगाने से निश्चित बोधक संयुक्त क्रिया का भाव व्यक्त होती हैं ।

जैसे – वह सवेरे उठता हैं,राम बोल उठा । इस प्रकार के क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता  के भाव रहते हैं ।

 

 

8 इच्छा बोधक- जिससे कोइ क्रिया करने की इच्छा प्रकट होती हैं उसे इच्छा बोधक संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे – वह जाना चाहता हैं , मैं खेलना चाहता हूँ , वह बोलना चाहता हैं , रमेश पढ़ना चाहता हैं आदि ।

 

 

9 अभ्यास बोधक- जिस क्रिया से अभ्यास करने का बोध हो तो वह अभ्यास बोधक क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे- वह पढ़ा करता हैं,आप लिखा करते हैं, इन वाक्यों से पता चलता हैं की करता किसी काम को करने की अभ्यास करता हैं । सामान्य भूतकाल की क्रिया में ‘करना’ क्रिया के रूप लगने से इच्छा बोधक संयुक्त क्रिया बनती हैं ।

 

 

10 शक्ति बोधक 

जिससे कार्य करने की शक्ति का बोध हो तो वह उसे शक्ति बोधक संयुक्त क्रिया कहा जाता हैं ।

जैसे – वह कर सकता हैं । 

मैं लिख सकता हूँ ।

वह दौड़ सकता हैं आदि ।

 

Sanyukt kriya

क्रिया के अर्थ – 

क्रिया का वह रूप जिससे कहने वाले के भाव व्यक्त होता हो वह क्रिया के अर्थ कहे जाते हैं । जिसका प्रमुख पाँच भेद होते हैं ।

1 निश्चययार्थ – जिससे निश्चय बात की सुचना मिले तो वह निश्चयायार्थ  कहें जाते हैं ।

जैसे – मैं जा रहा हूँ ।

वह खा रहा हैं ।

वे लोग चले गए ।

श्याम पढता हैं आदि। 

सामान्यभूतकाल,अपूर्णभूत, सामान्य वर्तमान,सामान्य भविष्य ये सब निश्चयायार्थ कहे जाते हैं ।

 

सम्भावनार्थ- इसमें अनुमान , इच्छा , कर्तव्य तथा आशीर्वाद आदि का अर्थ प्रकट होता हैं ।

जैसे – शायद आज काम हो जाए – अनुमान के अर्थ में ।

तुम्हारी तरक्की हो – इच्छा हैं ।

विद्यार्थियों को पढ़ने में ध्यान देना चाहिए – कर्तव्य ।

 

 

सन्देहार्थ – जिससे संदेह प्रकट हो ।

जैसे – वह शायद ही बोलता होगा , बच्चा रोता होगा , रमेश घर आया होगा आदि ।

सन्दिग्ध वर्तमान काल , सन्दिग्ध भूत इसके उदाहरण हैं ।

 

आज्ञार्थ – जिसमें आज्ञा , उपदेश तथा निषेध का भाव व्यक्त हो तो वह आज्ञार्थ कहा जाता हैं ।

जैसे – तुम पढों – आज्ञा ।

बड़े की आज्ञा मानों – उपदेश ।

खटाई मत खाओं- निषेध ।

 

 

संकेतार्थ – जिससे संकेत या शर्त का बोध हो तो वह संकेतार्थ कहा जाता हैं ।

जैसे – यदि वह आता तो मैं जाता , अर्थात ऐसे दो घटनाओं की असिद्धि प्रकट हो या जिसमे कार्य कारण का सम्बन्ध हो , हेतुहेतुमदभूत इसका उदाहरण हैं । 

 

 

 

इन्हें भी पढ़ें – शब्द किसे कहते हैं ।

 

 

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