Hindi varnamala , hindi alphabet- वर्णमाला क्या हैं परिभाषा, भेद एवं उदाहरण:
वर्णमाला का अर्थ होता हैं वर्णो के क्रमबद्ध समूह जिसके सहायता से अक्षरों शब्दों एवं वाक्यों का निर्माण किया जाता हैं जब हम कुछ बोलते हैं तो वह एक ‘भाषा‘ के रूप में होते हैं जो भाषा शब्द अथवा वाक्यों के रूप में होते हैं और इन्हीं शब्दों के सहारे अपनी बातों को एक दूसरे के बीच रख पाते हैं जो शब्द वर्णो से मिलकर बना होता हैं।
जैसे-रामायण जो चार अक्षरों तथा आठ वर्ण के मिलने से शब्द बना हैं।
इसमें वर्ण हैं- र्+ आ + म् + आ + य् + अ + ण् + अ = रामायण
दूसरा शब्द ‘कक्षा’ जो दो अक्षर और पांच वर्णो से मिलकर बना हैं वह वर्ण क् + अ + क् +ष् + आ हैं जिसके मिलने से कक्षा बना हैं इसी प्रकार हर एक शब्द वर्णो से मिलकर बना होता हैं और शब्दों से मिलकर वाक्य। आज इस वर्णमाला के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगें ।
Hindi varnamala
Hindi alphabet- वर्णमाला क्या हैं
किसी भी भाषा को अध्ययन करने के लिए उसके प्रारम्भिक चीजों को अच्छी तरह से सीखना पड़ता हैं जिसके बाद उनका अध्ययन करना बहुत आसान हो जाता हैं बात जब हिंदी भाषा की आती हैं तो इसके लिए सबसे पहले हिंदी वर्णमाला को समझना बहुत आवश्यक हो जाता हैं अन्यथा हम हिंदी भाषा को बोलना एवं पढ़ना कभी नहीं आयेंगें ।
वर्णमाला वर्णो का समूह होता हैं जिसे बोलने से ही स्पष्टीकरण हो रहा हैं वर्ण + माला = वर्णमाला जिसमें दो शब्द आता हैं पहला शब्द वर्ण हैं जिसको परिभाषित करें तो ध्वनि के मूल इकाई को वर्ण कहा जाता हैं और दूसरा शब्द हैं ‘माला’ जिसका का अर्थ होता हैं ‘समूह’ अतः सामान्य अर्थ में समझा जाये तो वर्णों के समूह को वर्णमाला कहा जाता हैं अर्थात हिंदी भाषा में जितने भी वर्ण हैं उन सभी वर्णों के सम्मलित रूप ही वर्णमाला हैं इन सारे बातों को समझने के लिए सबसे पहले ‘वर्ण’ के बारे में समझना होगा की वर्ण क्या होता हैं इसके बाद ही आगे की चीजों को समझने में आसानी होगी ।
वर्ण – ध्वनि के मूल ईकाइ को वर्ण कहा जाता हैं अर्थात जिसका टुकड़ा नहीं किया जा सकें वह वर्ण कहलाता हैं। दूसरी भाषा में जिसका उच्चारण स्वंग अपने-आप हो तो वह वर्ण कहा जाता हैं।
जैसे –
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः
( ध्यान दें – प्राकृति रूप से ध्वनि के उत्पति में मानव थोड़ी मेहनत की हैं जो आपसी वार्तालाव के प्रमुख कारण हो सकता हैं और भले ही मानव अपने आवश्यकता अनुसार उसका नामांकरण कर दिया हो लेकिन वह आपने आवश्यकता तक ही सिमित नहीं रख पाया हैं इसमें विस्तार होते गए जब मानव की जन्म हुवा तो शायद वह सबसे पहले बोलने की कोशिश किए होंगें यद्यपि कोइ -न-कोइ भाषा का प्रयोग जरूर किये होंगें उन्ही भाषाओं में से एक भाषा का निर्माण हुवा जिसको सैंद्धांतिक रूप देने के लिए क्रमबद्ध ध्वनि का जन्म हुवा उसी ध्वनि को वर्ण कहा गया और अभी तक हिंदी भाषा के लिए अनुकूलता होते गए।)
इन्हें भी पढ़ें – हिंदी मात्रा क्या होता हैं स्वर व्यंजन की मात्रा ।
Hindi varnamala
आधुनिक हिंदी भाषा में कुल 52 वर्ण हैं और इन्हीं के सहायता से सारे शब्दों का निर्माण किया जाता हैं, जिसमें 11 स्वर वर्ण हैं तथा 41 व्यंजन वर्ण हैं पहले हम वर्णमाल के तालिका को देखते हैं इसके बाद स्वर व्यंजन को समझेंगें।
वर्णमालाओं का वह समूह जो निम्नलिखित हैं-
1. अ आ इ ई उ ऊ
2. ए ऐ ओ औ अं अः
3. क ख ग घ ङ
4. च छ ज झ ञ
5. ट ठ ड ढ ण
6. त थ द ध न
7. प फ ब भ म
8. य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ।
ये सारे हिंदी वर्णमाला( Hindi varnamala) हैं और इन वर्णमालों को दो भागो में बाटा गया हैं –
1 स्वर और
2 व्यंजन
व्यख्या –
1 स्वर वर्ण –
जिस वर्ण का खंड या टुकड़ा न हो सके तो वह स्वर वर्ण कहलाता हैं स्वर वर्ण का उच्चारण करते समय अन्य किसी वर्ण का सहायता नहीं लेना पड़ता हैं अतः इस वर्ण का उच्चारण स्वंग अपने आप होता हैं।
जैसे – अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ ऋ, जिसकी संख्या 11 हैं ।
इन 11 वर्णो का उच्चारण करते समय दूसरे किसी वर्ण का सहायता नहीं लेते हैं मतलब की ‘अ ,आ, इ , ई , उ , ऊ ,ए , ऐ , ओ , औ , ऋ’ में कोइ दुसरा वर्ण शामिल नहीं हैं यह बिलकुल स्वतंत्र हैं लेकिंन व्यंजन वर्ण स्वतंत्र नहीं होता हैं उसके उच्चारण में स्वर वर्ण की सहायता लेना पड़ता हैं ।
स्वर वर्ण का प्रकार:
उच्चारण के अनुसार से स्वर वर्ण के तीन भेद होते हैं –
(1) ह्रस्व- जिस वर्ण के उच्चारण करने में एक मात्रा का समय लगे तो वह ह्रस्व कहा जाता हैं जिसे मूल स्वर भी कहा जाता हैं जैसे- अ इ उ ऋ ।
(2) दीर्घ- जिस वर्ण के उच्चारण में ह्रस्व से दुगुना समय लगे तो वह दीर्घ स्वर कहा जाता हैं जैसे- आ ई ऊ ।
(3) प्लुत – जिस स्वर के उच्चारण में तीन मात्रा का समय लगे तो वह प्लुत कहा जाता हैं अर्थात इसके उच्चारण करते समय ह्रस्व के तीन गुना समय लगता हैं जिसका उपयोग किसी को बुलाने तथा चिल्लाने में किया जाता हैं। जैसे – हे श्याम , ओउम ।
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कुछ वर्ण ऐसे भी होते हैं जिसे समझना जरूरी होता हैं जैसे कि –
(a) अनुनासिक स्वर – जिस स्वर का उच्चारण नाक से किया जाता हो तो वह अनुनासिक स्वर कहा जाता हैं प्रमुख रूप से चंद्र बिंदु होते हैं। जैसे – अँधेरा, आँगन, दाँत, गाँव आदि ।
(b) संयुक्त स्वर- वह स्वर जो दो स्वर वर्णो के मेल से बना हो तो वह संयुक्त स्वर कहा जाता हैं । जैसे –
अ + अ = अ
अ + इ = ए
अ + उ = ओ
अ + औ = औ
अ + ए = ऐ
अ + • = अं
अ + : = अः
(c) अनुस्वार युक्त – जिन स्वरों का उच्चारण दीर्घ हो तो वह अनुस्वार कहलाता हैं इनकी ध्वनि नाक से निकलती हैं। जैसे-
अंगूर, अंगद, अंदर, कंगन इत्यादि ।
(d) विसर्ग युक्त- इसका उच्चारण ह कि तरह होता हैं। जैसे- प्रायः पयः दुःख इत्यादि ।
(e) संधि- स्वर या दीर्घ स्वर वर्ण – जिस स्वर का उत्पति किसी दूसरे स्वर की मेल से हुई हो तो वह संधि-स्वर कहा जाता हैं इनकी संख्या सात हैं- आ ई ऊ ए ऐ ओ और औ
(f) दीर्घ सन्धि स्वर- दो समान मूल स्वर के मिलने से जो स्वर बनता हैं वही दीर्घ सन्धि स्वर कहा जाता हैं। जैसे-
- अ + अ = आ
- इ + इ = ई
- उ + उ = ऊ
- ऋ + ऋ = ऋ ,
अतः आ ई ऊ और ऋ को दीर्घ सन्धि स्वर कहा जाता हैं ।
(g) संयुक्त सन्धि स्वर – दो भिन्न(अलग- अलग) स्वरों के मेल से जो स्वर बनता हैं वह संयुक्त सन्धि स्वर कहा जाता हैं । जैसे-
- अ + इ = ए
- अ + उ = ओ
- आ + ए = ऐ
- आ + औ = औ
अतः ए ओ ऐ और औ को संयुक्त सन्धि स्वर कहा जाता हैं।
(h) निरनुनासिक स्वर – मुँह से बोली जानी वाली स्वर को निरनुनासिक कहा जाता हैं जैसे – इधर उधर, अपना आदि ।
(i) अनुस्वार- जिस स्वर का उच्चारण दीर्घ होता हैं उसकी ध्वनि नाक से निकलती हैं जैसे – अंगूर ,अंकुर , अंगद , अंगार आदि ।
(j) विसर्ग युक्त स्वर – अनुस्वार का इसका उच्चारण ह की तरह होता हैं जैसे प्रायः पयः दुःख आदि जिसका संकेत (:) होता हैं
स्वर वर्ण की मात्राएँ-
जब स्वर वर्ण का मिलन व्यंजन वर्ण के साथ होता हैं तो उसको सीधे उपयोग न कर के मात्राओं के रूप में किया जाता हैं जिसे मात्रा कहा जाता हैं।
इस तालिका में ऊपर के खाड़ी में स्वर हैं निचे के खाड़ी में उसके मात्रा हैं
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ए | ऐ | ओ | औ |
ा | ि | ी | ु | ू | े | ै | ो | ौ |
अं | अः |
. | : |
(ध्यान दें – अ का मात्रा नहीं होता हैं अ से रहित व्यंजन हलन्त कहा जाता हैं जैसे ग् व् स् प् आदि, यह जब किसी व्यंजन के साथ मिलता हैं तो इसका हलन्त लुप्त हो जाता हैं
जैसे- ग् + अ = ग
व् + अ = व आदि)
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2 व्यंजन वर्ण :
जिस वर्ण का खंड या टुकड़ा कर सके तो वह व्यंजन वर्ण कहलाता हैं। अर्थात इस वर्ण का उच्चारण करते समय अन्य वर्ण का सहायता लेना पड़ता हैं दूसरे शब्द में हम यह भी कह सकते हैं जिस वर्ण का उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से हो तो वह व्यंजन वर्ण कहा जाता हैं।
स्वर वर्ण का सहायता लेना ही पड़ता हैं इसके सहायता के बिना हम व्यंजन वर्ण का उच्चारण नहीं कर सकते हैं।
1 क ख ग घ ङ
2 च छ ज झ ञ
3 ट ठ ड ढ ण
4 त थ द ध न
5 प फ ब भ म
6 य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ श्र ड़ ढ़ अं अः
और व्यंजन वर्णो की संख्या 41 हैं इसके उच्चारण में स्वर छुपा होता हैं जैसे-
क + अ = क
ख + अ = ख
य + अ = य
श + आ = शा इत्यादि ।
और इसके बाद बारह खाड़ी आती हैं जिसे वर्ण तालिका में शामिल नहीं किया गया हैं, परन्तु यह स्वर वर्ण के मेल से बनते हैं जो बारह खाड़ी निचे हैं-
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः
बारह खाड़ी का निर्माण कैसे होता हैं :
क + अ = क
क + आ= का
क + इ = कि
क + ई = की
क + उ = कु
क + ऊ = कू
क + ए = के
क + ऐ = कै
क + ओ = को
क + औ = कौ
क + अं = कं
क + अः = कः
इसी तरह अन्य व्यंजन वर्ण का भी बारह खाड़ी बनाये जाते हैं ।
( ध्यान दें – 1. हिंदी जिस वर्णमाला में लिखी जाती हैं उसे देवनागरी कहते हैं।
2. ड़ और ढ़ को हिंदी वर्णमाला के नए वर्ण हैं जिसका प्रयोग शब्दों के मध्य या अंत में किया जाता हैं।)
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व्यंजन वर्ण को तीन भागों में बाटा गया हैं:
(1) स्पर्श वर्ण – क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग को स्पर्श कहते हैं।
क वर्ग का मतलब होता हैं – क ख ग घ ञ इसीतरह
- च वर्ग – च छ ज झ ञ होता हैं।
- ट वर्ग– ट ठ ड ढ ण होता हैं ।
- त वर्ग– त थ द ध न होता हैं।
- प वर्ग – प फ ब भ म होता हैं इसे कंठ तालु मूर्द्धा दाँत ओष्ठ के द्वारा बोले जाते हैं।
(2) ऊष्म वर्ण – श ष स ह को उष्म कहते हैं।
(3) अन्तस्थ वर्ण – य र ल व को कहते हैं ।
* संयुक्ताक्षर – क्ष त्र ज्ञ श्र को संयुक्ताक्षर कहा जाता हैं।
* अनुस्वार और विसर्ग को अयोगवाह कहा जाता हैं।
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अल्पप्राण और महाप्राण :
ध्वनि उच्चारण में हवा का उपयोग होता हैं जिस व्यंजन वर्ण के उच्चारण करते समय कम हवा लगे तो वह अल्पप्राण तथा ज्यादा हवा लगे तो उसे महाप्राण कहा जाता हैं संस्कृत में इसे प्राण कहा जाता हैं।
अल्पप्राण – प्रत्येक वर्ग का पहला तीसरा तथा पाँचवा वर्ण अल्पप्राण हैं ।
महाप्राण – प्रत्येक वर्ण का दूसरा तथा चौथा वर्ण को महाप्राण कहा जाता हैं ।
* घोष वर्ण- जिस वर्ण के उच्चारण में केवल नाद का उपयोग हो तो वह घोष वर्ण कहा जाता हैं, जैस- य र ल व को घोष वर्ण कहा जाता हैं और साथ में प्रत्येक स्पर्श वर्ण का तीसरा,चौथा,और पाँचवा वर्ण भी घोष वर्ण हैं।
* अघोष वर्ण – जिस वर्ण का उच्चारण नाद से न होकर श्वास से हो तो वह अघोष वर्ण कहा जाता हैं। प्रत्येक स्पर्श वर्ण के पहला दूसरा और श ष स अघोष वर्ण हैं।
(ध्यान दें- 1.हम कल्पना करते हैं मानव उत्पति के बाद उनके विकाश के समय में मानव सबसे पहले बोलने की कला सीखें होंगे वार्तालाव के द्वारा अपनी बिच में सामंजस्य करने के लिए किसी-न-किसी बोली भाषा का प्रयोग जरूर किए होंगें जो भाषा एक वर्ण के रूप में प्रयुक्त हुए।
2. एक प्रश्न हैं जिसमें विद्यार्थी अक्सर असमंजस में रहते हैं कि वर्ण और ध्वनि में अंतर को लेकर की दोनों में क्या अंतर हैं तो इसका जबाब हैं व्यवहारिक रूप से कोइ अंतर नहीं हैं बस थोड़ा सा अंतर है जिसका कोइ विशेष स्थान नहीं हैं यदि स्थान होता तो उसे वर्ण से बहुत अलग रखा जाता वह अंतर क्या हैं-जिसका टुकड़ा न हो सके वह वर्ण कहलाता है और जिसका टुकड़ा हो सकते वह अक्षर कहलाता हैं।)
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वर्णो का उच्चारण कैसे होता हैं:
मुख के जिस स्थान से वर्ण(ध्वनि) निकलती हैं वह भाग उस वर्ण का उच्चारण कहा जाता हैं । इस प्रकार वर्णो के उच्चारण स्थान को तालिका के माध्यम से समझा जा सकता हैं।
वर्ण | उच्चारण स्थान | नाम |
अ,आ,कवर्ग , ह , और विसर्ग | कंठ | कण्ठय |
इ, ई, च वर्ग , य , और श | तालु | तालव्य |
ऋ ,ॠ , टवर्ग , र और ष | मूर्द्धा( तालु की ऊपरी भाग) | मूर्द्धन्य |
त वर्ग , ल ,लृ, और स | दन्त | दन्त्य |
उ, ऊ, और पवर्ग | ओष्ठ | ओष्ठ्य |
ङ, ञ, ण, न, और म | नासिका | अनुनासिक |
ए, ऐ, | कंठ +तालु | कंठ – तालव्य |
ओ , औ | कंठ + ओष्ठ | कण्ठोंष्ठय |
व | दन्त + ओष्ठ | दन्तोष्ठय |
इन्हें भी पढ़ें – स्वर व्यंजन की परिभाषा ।