Bahuvrihi samas , बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं ,परिभाषा भेद एवं उदाहरण – सम्पूर्ण व्याख्या ।

Bahuvrihi samas , बहुव्रीहि समास:

बहुव्रीहि समास- यह हिंदी व्याकरण के अंतर्गत अध्ययन किये जाने वाले समास के भेदों में से एक हैं जो समास का ही एक प्रकार हैं बहुव्रीहि को जानने से पहले समास के बारे में जानना बहुत आवशयक होता हैं क्योंकि समास के प्रमुख चार भेदों में ( अव्ययीभाव,तत्पुरूष ,द्विगु  एवं बहुव्रीहि  समास हैं ) बहुव्रीहि समास भी एक प्रमुख हैं। 

समास – दो या दो से अधिक पदों को मिलने से जो पद बनता हैं वह समास कहा जाता हैं, ये पद (आपसी सम्बन्ध बताने वाले सम्बन्ध सूचकशब्द, प्रत्यय आदि) अपने बिच के विभक्ति को छोड़कर आपस में मिल जाते हैं और मिले हुए पद समास होता हैं। पदों के मिलने से जो शब्द बनता हैं वह समस्त पद अथवा सामासिक शब्द कहे जाते हैं । जैसे- राजपुत्र अर्थात राजा का पुत्र जो समास का विग्रह हैं राजपुत्र समस्त पद हैं हम इस पेज में समास का नहीं ‘बहुव्रीहि समास’ का अध्ययन करने जा रहे हैं।

 

 

Bahuvrihi samas kise kahate hain :

 

प्रमुख व्यख्या –  

 

1 बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं ।
2 बहुव्रीहि समास के परिभाषा ।
3 बहुव्रीहि समास के भेद एवं उपभेद ।
4 बहुव्री समास के उदाहरण ।

 

 

बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं – 

  • बहुव्रीहि समास में अन्य पद की प्रधानता रहती हैं पूरा समस्त पद किसी अन्य पद का विशेषण बन जाता हैं। यदि आप समास के बारे में जानते हैं तो आपको आवश्यक पता होगा की समास में पदों के मेल होता हैं जिसमें पद की प्रधानता आवश्यक होती हैं और वह एक विशेष अर्थ प्रदान करते हैं जैसे -गंगाजल अर्थात गंगा का जल लेकिन बहुव्रीहि समास में अन्य पद की प्रधानता होती हैं इसमें कोइ भी पद प्रधान नहीं होता हैं जो अपने पदों से भिन्न किसी भी प्रकार के संज्ञा के विशेषण होते हैं इसलिए हम कह सकते हैं की जिस सामासिक पद का कोइ अन्य पद प्रधान हो तो वह बहुव्रीहि समास कहे जाते हैं । 

 

  • जब दो या दो से अधिक पद आपस में मिलते हैं तो वह समास बन जाता हैं और विभक्ति का लोप भी हो जाता हैं समास के पद में कभी प्रथम पद(पूर्व पद) की प्रधानता होती हैं तो कभी उत्तर (अंतिम पद) की प्रधानता होती हैं तो कभी दोनों पद की प्रधानता होती हैं इसके अलावा कभी दोनों पद की प्रधानता नहीं होकर किसी तीसरा पद मतलब की अन्य पद की प्रधानता होती हैं बस यही पर हमें समझने की आवश्यकता हैं बहुव्रीहि समास में किसी भी पद की प्रधानता नहीं होती हैं सिर्फ अन्य पद की प्रधानता होती हैं जो अपने पदों से भिन्न किसी संज्ञा के विशेषता को दर्शाते हैं जिसे हम परिभाषा एवं उदाहरणों के साथ ही अच्छी तरह से समझ सकते हैं जो निम्न हैं ।

 

 

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verb किसे कहते हैं ।

 

Babuvrihi samas ki paribhasha :

बहुव्रीहि समास के परिभाषा – 

जिस समास का अन्य पद प्रधान हो तो बहुव्रीहि समास कहा जाता हैं अर्थात ‘अन्यपदप्रधानों बहुव्रीहि‘ जो समास अपने समस्त पद के सामन्य अर्थ न देकर कोइ अन्य विशेष अर्थ प्रदान करता हो तो वह बहुव्रीहि समास कहा जाता हैं। दूसरी शब्दों में वह सामासिक पद जो अपने पदों से भिन्न किसी अन्य प्रकार के विशेष अर्थ प्रदान करता हो तो वह बहुव्रीहि समास कहलाता हैं। जैसे-

लम्बोदर– लम्बा हो उदर जिसका मतलब ‘गणेशजी‘।

यदि विग्रह करते हैं तो लम्ब + उदर = लम्बोदर जिसमें लम्ब का अर्थ होता हैं ‘बड़ा’ तथा उदर का अर्थ होता हैं ‘पेट’ लेकिन इसका अर्थ बड़ा पेट न होकर कोई अन्य अर्थ ही देते हैं अर्थात गणेशजी होता हैं।

इसीप्रकार- मुरलीधर, मुरली को धारण करने वाला ‘कृष्ण’ जी अर्थात श्रीकृष्ण भगवान।

पतझर – जब पत्ते झड़ गए हो अर्थात पतझर ।

त्रिशूलपानी – शंकर जी (शंकर भगवान)

 

 

बहुव्रीहि समास के भेद :

सके प्रमुख दो भेद होते हैं – 

(1) समानाधिकरण 

(2) व्यधिकरण 

 

व्यख्या –

(1) समानाधिकरण –जिस बहुव्रीहि समास के सभी पदों में से एक ही विभक्ति लगती हो तो वह समानाधिकरण बहुव्रीहि कहा जाता हैं इनके छः भेद होते हैं जो मिम्नलिखित हैं –

(1) कर्म बहुव्रीहि –  कलहप्रिय( कलह हैं प्रिय जिसको) , प्राप्तोदक( प्राप्त हैं उदक जिसको)

(2)  कारणबहुव्रीहि – दत्तचित ( दिया गया है चित्त जिसके द्वारा )

(3) सम्प्रदान बहुव्रीहि – दत्तचित्त ( दिया गया चित्त जिसके लिए )

(4) अपादान बहुव्रीहि – निर्जन ( निकल गया हैं जन – समूह जिसमें से ) 

(5) सम्बन्ध बहुव्रीहि – दशानन ( दस मुँह हैं जिनके )

(6) अधिकरण बहुव्रीहि – प्रफुल्ल कमल ( खिले हैं कमल जिसमें वह तालाब ) 

 

(2) व्यधिकरण 

जिस समास के विग्रह में दोनों पदों में अलग – अलग विभक्तियाँ लगती हो तो वह व्यधिकरण बहुव्रीहि समास कहा जाता हैं । जैसे –

वीणापाणि – वीणा हैं हाथ में जिसके वह अर्थात सरस्वती ।

चंद्रशेखर – चंद्र हैं शिखर पर जिसके अर्थात शिव ।

 

 

Bahuvrihi samas

 

बहुव्रीहि समास के कुछ अन्य भेद :

यह पाँच हैं – 

  1. सह बहुव्रीहि
  2. व्यतिहार बहुव्रीहि 
  3. मध्यमपदलोपी 
  4. संख्या बहुव्रीहि 
  5. प्रादि बहुव्रीहि 

 

व्यख्या – 

  1. सह बहुव्रीहि – जिस समास के पूर्व पद में ‘सह’ होता हो तो वह सह बहुव्रीहि समास कहा जाता हैं और समास होने पर ‘सह’  का केवल ‘स’ रह जाता हैं । जैसे –

सपुत्र – पुत्र के साथ जो वह ।

सपरिवार – परिवार के साथ ,,।

सदेह – देह के साथ ,, .

सकर्मक – कर्म के साथ ।

ससैन्य – सेना के साथ ।

 

2 व्यतिहार बहुव्रीहि – जिस समास में घात-प्रतिघात सूचित होता हो तो वह व्यतिहार बहुव्रीहि कहा जाता हैं उसे व्यतिहार बहुव्रीहि कहा जाता हैं ।

जैसे – 

केशाकेशी – केश पकड़ कर की गई लड़ाई ।

बाताबाती – बात – बात में की गई घात – प्रतिघात ।

मुक्का – मुक्की – मुक्का से की जाने वाली लड़ाई ।

इसीप्रकार घूँसा- घुँसी , लाठा – लाठी , खींचातानी , कहासुनी , मारामारी आदि ।

 

3. मध्यमपदलोपी-जिस समास में बिच का पद लुप्त रहता हो तो वह मध्यमलोपी समास कहा जाता हैं । जैसे –

मृगनयनी , जिस स्त्री की आँख हिरन के जैसे हो वह मृगनयनी ।

इसीतरह- गजानंद , चंद्रमुखी , आदि ।

 

4.संख्या बहुव्रीहि 

जिस बहुव्रीहि समास का प्रथम पद संख्यावाची हो तो वह संख्यावाची बहुव्रीहि कहा जाता हैं ।

जैसे – चतुर्भुज ( जिसके चार भुजाएँ हैं ) 

दशानन( दस हैं आनन मतलब जिसके दस मुँह हो )

 

5 प्रादि बहुव्रीहि –

जिस बहुव्रीहि समास का पूर्व पद उपसर्ग हो तो वह प्रादि बहुव्रीहि कहा जाता हैं ।

जैसे – विफल – फल नहीं हैं जिसमें  ।

निर्दय – जिसमें दया नहीं हो मतलब गई हुई दया ।

विधवा  – पति मर चूका हो जिसका ।

कुरूप – जिसमें रूप नहीं हो ।

निर्धन – जिसके पास धन नहीं हो ।

 

Bahuvrihi samas ke udaharan :

 

चक्रधर –  चक्र धारण करने वाला जैसे भगवान्  श्री कृष्ण ।

दिगम्बर- दिशाएँ ही हैं वस्त्र जिसके  अर्थात भगवान शिव ।

लम्बोदर – लम्बा हो उदार अर्थात गणेश जी ।

सिंहवाहिनी- सिंह की वाहन करने वाली माता दुर्गा ।

दशरथनंदन-  दशरथ का पुत्र भगवान श्री  राम।

नीलकण्ठ- नीला है कण्ठ जिनका मतलब भगवान  शिव।

हलधर- हल को धारण करने वाला श्री बलराम जी ।

चक्रपाणि – चक्र हो पाणि में अर्थात भगवान विष्णु जी ।
चतुरानन – चार आनन वाले वह ब्रह्मा ।
खगेश – खगों का ईश हैं जो अर्थात गरूड़ ।
Bahuvrihi samas
Bahuvrihi samas examples in hindi 

 

अनुचर- अनु का अर्थ होता हैं पीछे तथा चर का अर्थ होता हैं चलने वाला अर्थात पीछे चलने वाला कोइ सेवक।

 

चतुर्भुज- जिसकी चार भुजाएँ हैं अर्थात भगवान विष्णु ।

 

अंजनिनंदन- अंजनि का नंदन मतलब अंजनी का पुत्र हनुमान जी ।

 

चारपाई- जिसके चार पैर हो मतलब  खाट

 

निर्मल-  जो मलरहित है अर्थात स्वच्छ।

 

सोमरस- एक प्रकार का सोम का रस जो नशीली पदार्थ होता हैं नशीला द्रव मतलब मदिरा ।

 

व्रजपाणि- जिसके हाथ में व्रज हो अर्थात  इन्द्र भगवान ।

 

महात्मा- जिसकी आत्मा महान हो अर्थात ऋषि ।

 

घनश्याम- जो घन के समान श्याम हैं मतलब श्रीकृष्ण ।

 

युधिष्ठिर- जो युद्ध में स्थिर रहें वह धर्मराज युधिष्ठिर ।

 

षडानन- जिनके षट् आनन हैं अर्थात कार्तिकेय ।

 

एकदन्त- एक दंत (दाँत) हैं  जिसके मतलब गणेश जी के बारे में बता रहे हैं ।

 

पीताम्बर- पीत (पीले) हैं वस्त्र धारण करने वाले वह भगवान विष्णु हैं।

 

दिवाकर-  जो सूर्य का दूसरा नाम हैं मतलब की सूर्य ।

 

देवराज – अर्थात देवताओं का राजा इन्द्र । 

 

पद्मासना- पद्म है आसन जिनका  लक्ष्मी जी ।

 

सूतपुत्र- सारथी  का पुत्र है जो वह ‘कर्ण’ हैं ।

 

त्रिनेत्र = तीन नेत्रों वाला भगवान शिव ।

 

दिगम्बर – दिशा ही है वस्त्र जिनका शिव ।

 

जलज – जल में उत्पन होने वाला कमल।

 

 

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