Visarg sandhi , visarg sandhi kise kahate hain ( विसर्ग संधि क्या हैं परिभाषा भेद उदाहरण – सम्पूर्ण अध्ययन )

Visarg sandhi  , visarg sandhi kise kahate hain ( विसर्ग संधि क्या हैं परिभाषा भेद उदाहरण):

यदि आप विसर्ग संधि के बारे में जानना चाहते हैं यह articles आपके लिए बहुत महत्पूर्ण होने वाली हैं  क्योंकि आपको विसर्ग संधि के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां मिलने वाली हैं , इससे पहले आप स्वर संधि और व्यंजन संधि के बारे में पढ़ चुके होंगें ,अब इससे आगे विसर्ग संधि(Visarg sandhi) के बारे में जानने की आवश्यकता हैं जिसकी जानकारी इस पेज में मिलने वाली हैं ।

परिचय – जैसा की आप जानते हैं सामान्य रूप से संधि के तीन भेद होते हैं (1) स्वर संधि (2) व्यंजन संधि और (3) विसर्ग संधि ,जिसमें आपको विसर्ग संधि के बारे में जानकारिया प्रदान की गई हैं और विसर्ग संधि के सम्बंधित हर एक बातों को बड़ी सरलता से समझाया गया हैं जिससे की आने वाली हर एक प्रश्नो का उत्तर आसानी से दें सकें ।

 

 

visarg sandhi kise kahate hain 

 

सबसे पहले यह जानते हैं कि विसर्ग संधि क्या होता हैं :

विसर्ग संधि क्या हैं / विसर्ग संधि के परिभाषा – 

स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण के साथ विसर्ग के मेल से जो विकार उत्पन्न होता हैं उसे विसर्ग संधि कहा जाता हैं अर्थात स्वर व्यंजन के साथ विसर्ग के मेल से उत्पन्न विकार को विसर्ग संधि कहते हैं। कुल बात यह हैं कि स्वर वर्ण हो या व्यंजन वर्ण यदि इनके किसी भी वर्ण के साथ विसर्ग(:) का मेल होता हैं और उस मेल( योग) से जो विकार उत्पन्न होंगें वही विसर्ग संधि कहा जायेगा ।

(ध्यान दें – आप एक बात जरूर जानते होंगें कि संधि में दो वर्णो का योग या मेल होता हैं इससे भी महत्पूर्ण बात यह हैं कि जिस दो शब्द के वर्ण आपस में जुड़ते हैं उसमें प्रथम शब्द(पद) के अंतिम वर्ण तथा दूसरा शब्द(पद) के प्रथम वर्ण होता हैं जैसे कि विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, इसमें दो शब्द हैं पहला शब्द विद्या हैं तथा दूसरा शब्द अर्थी हैं अब प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण हैं और दूसरा शब्द के प्रथम वर्ण हैं जो दोनों आपस में मिलकर ‘आ’ का निर्माण करते हैं जिसे ही विकार कहा जाता हैं इस प्रकार कोइ भी संधि क्यों न हो प्रथम पद के अंतिम वर्ण और दूसरे पद के प्रथम वर्ण आवशयक मिलते हैं यह बात संधि के परिभाषा का कहना हैं बस इतना जरूर ध्यान रखना होता हैं)

 

जैसे – मनः + हर = मनोहर ( यहाँ विसर्ग(:) का मेल व्यंजन वर्ण के साथ हुवा हैं और दोनों के मिलने से   ो  का विकार उत्पन्न हुवा हैं ।

सरः + वर = सरोवर (यहाँ पर भी विसर्ग के साथ व वर्ण के साथ यह हुवा हैं) 

मनः + रथ = मनोरथ ।

प्रातः + काल = प्रातःकाल ।

पुरः + हित = पुरोहित ।

 

 

 

Visarg sandhi
 विसर्ग संधि के कुछ नियम जिसे समझाना बहुत जरूरी होता हैं ।
विसर्ग संधि के नियम-  
नियम – 1. यदि विसर्ग के पहले हो और उसके आगे घोष व्यंजन (किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ
या पंचम वर्ण अथवा (य, र, ल, व, ह) हो तो विसर्ग सहित का हो जाता है।
जैसे- मनः + नयन =मनोनयन( ध्यान दीजिए  मनः + नयन में  विसर्ग के पहले अ  हैं जो ,  में छिपा हैं वह कैसे हैं इसके लिए आप मनः को बार – बार पढ़िए इसके उच्चारण में जरूर आयेंगें , इसके बाद ‘नयन’ में ‘न’  आया हैं जो  त वर्ग का पंचम ( पाचवाँ ) वर्ण हैं जिन दोनों के मिलने से का हो गया हैं । इसी प्रकार आप निचे के उदाहरण को भी समझ सकते हैं इसके लिए इनके नियमों को अच्छी तरह से पढ़ें ।
सरः + वर =सरोवर
सरः + ज =सरोज
यशः + दा= यशोदा 
पय : + द = पयोद
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध । 
2. यदि विसर्ग के पहले हो और इसके बाद में क, ख, प, फ में कोई वर्ण हो तो विसर्ग
ज्यों-का-त्यों रहता है।
जैसे- प्रातः + काल = प्रातःकाल ( बहुत सीधी सी बात हैं विसर्ग के पहले हैं क्योंकि में तो हैं जो विसर्ग से पहले आया हैं और इसके बाद   आया हैं इसलिए विसर्ग(:) ज्यों- का – त्यों रह गया हैं । आप  यदि नियमों को अच्छी तरह से समझ लेते हैं तो उतना भी कठिन नहीं रहता हैं निचे के भी दोनों उदाहरण को देख कर समझ सकते हैं)
रजः + कण = रजःकण
पयः + पान = पय: पान इत्यादि ।
3 यदि विसर्ग के पहले या को छोड़कर छोड़कर कोइ अन्य स्वर वर्ण हो , और विसर्ग के बाद कोइ भी स्वर वर्ण आता हैं या किसी वर्ग का तृतीया , चतुर्थ , पंचम वर्ण , अथवा य , र , ल ,  व ,  ह  हो तो विसर्ग का र्  हो जाता हैं ।
(यह नियम थोड़ा उलझा हुवा लगता हैं लेकिन उदाहरण से सब स्पष्ट हो जायेगें क्योंकि किसी शब्द की संधि उदाहरण से ही जल्दी समझ में आती हैं। )
जैसे-निः + आधार = निराधार ।
( यहाँ पर विसर्ग के पहले या को छोड़ना हैं तो हम छोड़ देते हैं उन पर बात नहीं करेंगें हांलाकि या तो हैं भी नहीं , इसमें तो विसर्ग से पहले हैं जिसकी मात्रा में   ि  लगी हैं जो कोइ अन्य स्वर वर्ण हैं नियम भी कहती हैं कि कोइ अन्य स्वर वर्ण आए , या किसी वर्ग के तृतीया , चतुर्थ , पंचम अथवा य , र , ल , व , ह आए , लेकिन आधार  में तो ‘आ’ वर्ण आया हैं जो कि यह एक स्वर वर्ण हैं और आगे यह कहना हैं कि विसर्ग का र् हो जाता हैं तो आप देख सकते हैं कि विसर्ग बन गया हैं और पुरे शब्द निराधार बन गया हैं । इसी प्रकार निचे के उदाहरण को भी समझ सकते हैं ) 
निः + उपाय = निरुपाय ।
दु: + गन्ध = दुर्गन्ध । 
बहि: + गत = बहिर्गत ।
दु: + आत्मा = दुरात्मा इत्यादि ।
4 . यदि विसर्ग के पहले या हो और आगे क, ख, प, या हो तो विसर्ग का ष 
हो जाता है ।
जैसे- निः + कपट = निष्कपट ( नियम कहती हैं कि विसर्ग के पहले  या  हो , जो कि में लगा हैं और उसके बाद आगे क , ख , प , या हो ,जो कि हैं इसलिए विसर्ग का ष हो गया हैं और पूरा शब्द  निष्कपट बन गया हैं)
 
अन्य उदाहरण – निः + पाप = निष्पाप । 
निः+ फल = निष्फल
 निः + कृति = निष्कृति इत्यादि ।
Visarg sandhi
  5 . यदि विसर्ग के बाद या हो, तो विसर्ग का हो जाता है  या हो तो  
हो जाता है और या हो तो स् हो जाता है ।
जैसे- नि: + चय = निश्चय ( यहाँ विसर्ग के बाद च आया हैं , इसलिए नियमानुसार विसर्ग का हो गया हैं और पूरा वाक्य निश्चय बन गया हैं
निः + चल = निश्चल
धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
निः + तार = निस्तार इत्यादि । 
6 . यदि विसर्ग के बाद श, ष या हो, तो विसर्ग का क्रमशः श, ष् स् ( श, ष , स तीनों में हलन्त लगा हैं ) हो जाता है या
ज्यों-का-त्यों रह जाता है । इस नियम को आप आसानी से समझ सकते हैं उदाहरण को ध्यान से समझने का प्रयास कीजिए । 
जैसे- दु. + शासन = दुश्शासन या दुःशासन।
दु: + साध्य = दुस्साध्य या दुःसाध्य ।
7 .यदि या के बाद विसर्ग हो और उसके बाद हो  तो का ई ,  का होता  है तथा विसर्ग लुप्त हो जाता है ।
जैसे- निः + रोग = नीरोग ( में लगा हैं और उसके बाद विसर्ग हैं इसलिए का हो गया हैं ) 
निः + रस = नीरस ।
निः + रव = नीरव इत्यादि ।
(ध्यान दें – निः के विसर्ग के स्थान पर र् भी लिखा जाता है ।)

8 . यदि विसर्ग के पहले हो और उसके बाद कोई अन्य स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है ।
जैसे – अतः + एव = अतएव । (यहाँ पर भी विसर्ग के पहले   हैं उसके बाद अन्य स्वर हैं और संधि होने पर विसर्ग का लोप हो गया हैं ) 
यश: + इच्छा = यशइच्छा इत्यादि ।
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कुछ अन्य हिंदी संधि : 
यह + ही = यही ।
उस + ही = उसी ।
इस + ही = इसी
सुन + इ = सुने ।
यहाँ + ही = यहीं
जहाँ + ही = जहीं 
कहाँ + ही = कहीं
दे + ॐ = दूँ

निष्कर्ष – वास्तव में संधि दो वर्णो के मेल ही  हैं जिसके मिलने की कई तरीके होते हैं जिसे सार्थक पूर्ण तरीकों से व्यवस्थित करना पड़ता हैं और पदों को व्यवस्थित करते समय वर्णो का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं ताकि संधि या संधि विच्छेद करते समय नियमों का सार्थकपूर्ण  पालन हो सकें अन्यथा हमें संधि करने में बड़ी दिक्क्त होगी । संधि के नियमों को पढ़ने के बाद भी पदों को जोड़ने या अलग करने में आपको खुद की अनुभव लगती हैं क्योंकि लिखी हुई बातें क्या कहती हैं और उसे आप किस तरीको से समझ रहे हैं इस तथ्य को समझना विद्यार्थी अथवा पाठक के लिए बहुत महत्पूर्ण होता हैं जैसे की इस articles में  विसर्ग संधि के बारे में बताया गया हैं जिसे कहने के लिए तो किसी स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण का मेल विसर्ग (:) से होता हैं जिसके बाद किसी नए वर्ण का उत्पति होती हैं जो संधि होने वाले पद को संतुष्ट करते हैं।

 

न्हें भी पढ़ें – 1 Hindi वर्णमाला क्या हैं ?

2 संधि क्या हैं ?

3 दीर्घ संधि कि परिभाषा क्या होती हैं । 

 

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