Sangya ke kitne bhed hai , ( संज्ञा के भेद प्रकार एवं परिभाषा-उदाहरण )- Awgrammar

 

Sangya ke kitne bhed hai , sangya ke bhed (संज्ञा के भेद, प्रकार एवं परिभाषा  उदहारण सहित )

अर्थ के अनुसार संज्ञा के पाँच भेद होते हैं तथा व्युत्पत्ति के अनुसार संज्ञा के तीन भेद होते हैं अर्थात कुल मिलाकर संज्ञा के आठ भेद होते हैं संज्ञा के इन भेदों को समझने से पहले संज्ञा के बारे में समझ लेना अच्छा रहता हैं जिसे हम परिभाषा के माध्ययम से समझते हैं। 

संज्ञाजिस से किसी वस्तु व्यक्ति स्थान अथवा पर्दार्थो के नाम का बोध हो तो वह संज्ञा कहलाता है,वास्तव में संज्ञा का सम्बन्ध किसी के नाम से ही होता हैं साधारण भाषा में कहें तो नाम को ही संज्ञा कहा जाता हैं। संसार के हर चीजें पदार्थ कहलाती हैं और उन सभी पदार्थो को किसी-न-नाम से सम्बोधित जरूर किया जाता हैं बिना नाम का कुछ भी नहीं होता हैं जिसमें व्यक्ति वस्तु एवं पदार्थो के प्रकृति गुण व्यवहार उम्र स्वभाव आदि के नाम भी शामिल होते हैं। 

 

 

 sangya ke kitne bhed  hai , sangya ke bhed

संज्ञा के  भेद  :

 

अर्थ के अनुसार संज्ञा के पांच भेद होते –

1 व्यक्ति वाचक संज्ञा 

2 जाती वाचक संज्ञा 

3 समूह वाचक संज्ञा 

4 द्रव वाचक संज्ञा  

5 भाव वाचक संज्ञा 

 

 

व्युत्पत्ति के अनुसार संज्ञा के तीन भेद होते हैं निम्न हैं

1 रूढ़ 

2 योगिक 

3 योगरूढ़ि 

  

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Sangya ke kitne bhed hai 

 

 

 

अब हम संज्ञा के इन सभी भेदों का बारी-बारी से अध्ययन करते हैं- 

 

संज्ञा के प्रकार एवं परिभाषा:

 

 1 व्यक्तिवाचक संज्ञा- जिस से किसी खाश व्यक्ति वस्तु स्थान के नाम का बोध हो तो वह व्यक्तिवाचक संज्ञा कहा जाता हैं ।

 जैसे- आदित्य , विकाश , बैद्यनाथ , संतोष, सुभाष , देवेंद्र ,  किताब , कलम , कुर्सी, बॉल, मेज ,पटना , दिल्ली , कोलकाता , पंजाब , दरभंगा , झारखण्ड, आदि 

हम जितने भी उदाहरण दिए हैं  इन  उदाहरणों में व्यक्ति, वस्तु और  स्थान के नाम आ रहा हैं  जिन नामों को हम व्यक्ति वाचक संज्ञा  कहते हैं क्योंकि इससे किसी खास व्यक्ति वस्तु एवं स्थान का  बोध हो रहा हैं ऐसा नहीं की ये  नाम सब  काल्पनिक हैं  एक विशेष नाम  का बोध हो रहा हैं अतः ऐसे नाम को व्यक्ति वाचक संज्ञा कहा जाता हैं।

 

 

2 जाती वाचक संज्ञा – जिस नाम से किसी जाती भर का बोध हो तो वह जाती वाचक संज्ञा कहा जाता हैं ।

जैसे – लड़का, लड़की, मनुष्य , कुत्ता , बिल्ली , पंछी , हाथी, कौवा, सर्प , गाय , चींटी , गधा , तोता, मौर आदि ये सारे नाम को जाती वाचक संज्ञा कहा जाता हैं क्योंकि इन सभी नामों में किसी एक जाती भर का बोध हो रहा हैं।

लड़की- लड़की कहने से संसार के सभी लड़की जाती का बोध होता हैं न की किसी एक लड़की की बात की जा रही हैं लड़की कहने से दुनिया में जितने भी लड़की हैं उन सभी के बारे में कहा जा रहा हैं इसलिए इसे जाती वाचक संज्ञा कहा जाता हैं।

लड़का – लड़कों के सम्पूर्ण जाती का बोध करा रहा हैं न की किसी एक लड़के की बात की जा रही हैं, सम्पूर्ण लड़का जाती के बारे में कहा जा रहा हैं ।

कुत्ता बिल्ली हाथी सर्प कहने से उनके सम्पूर्ण जाती का बोध होता हैं न की किसी एक कुत्ता अथवा बिल्ली सर्प का बोध नहीं होता हैं और काला हो या उजला इससे भी कोइ मतलब नहीं होता हैं सिर्फ जाती से मतलब होता हैं इसी प्रकार यदि कोइ भी नाम किसी पुरे जाती का बोध कराती हैं तो वह जाती वाचक संज्ञा कहा जाएगा ।

 

 

 

3 समूह वाचक संज्ञा- जिस नाम से किसी समूह भर का बोध हो तो वह समूह वाचक संज्ञा कहा जाता हैं ।

 

जैसे- झुंड,दल,मेला,सेना,कक्षा,भीड़,कक्षा,गुच्छा,सभा आदि, जब आप इन शब्दों पर आप विचार कीजिए हर एक शब्द किसी समूह का बोध कराते हैं झुण्ड का नाम लेते ही किसी समूह का बोध हो रहा हैं ।

दल – जो किसी के समूह को दर्शाते हैं ।

मेला – मेला में तो कोइ एक व्यक्ति नहीं नहीं होते हैं बहुत सारे लोग होते हैं जिसमें बहुत सारे लोगों का समूह होता हैं इसलिए मेला को समूह वाचक संज्ञा कहा जाता हैं ।

कक्षा – कक्षा कहने से विद्यार्थियों का समूह का बोध होता हैं ।

गुच्छा – गुच्छा कहने से किसी समूह का बोध होता हैं जैसे अंगूर का गुच्छा जिसमें अंगूर का समूह होता हैं । इसी प्रकार अन्य शब्द भी समूह वाचक संज्ञा कहा जाता हैं ।

 

 

 

4 द्रव वाचक संज्ञा- जिसे नापा या तौला जाय परन्तु गिना न जा सके तो वह द्रव वाचक संज्ञा कहा जाता हैं ।

जैसे – गेहूँ , तेल , चावल , दाल , पानी , दूध , आदि ।

गेहूँ- गेहूँ को हम वजन कर सकते हैं परन्तु गिंनती नहीं कर सकते हैं ।

तेल- तेल  को माप सकते हैं लेकिन गिनती नहीं कर सकते हैं ।

चावल – चावल को हम तौल सकते हैं परन्तु इसका गिनती नहीं कर सकते हैं ।

 

 

 

 5 भाव वाचक संज्ञा – जिस से किसी व्यक्ति वस्तु अथवा पदार्थ के गुण दोष धर्म आचरण स्वभाव आदि का बोध हो तो वह भाव वाचक संज्ञा कहा जाता हैं, ऐसे संज्ञा को हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं छू नहीं सकते हैं।

 

जैसे- अच्छा,सुंदरता,ईमानदारी,खुशी,दुःख,उदास,घमंड,प्यार,नफरत,बचपना,जवानी,बुढ़ापा आदि शब्द को भाव वाचक संज्ञा कहा जाता हैं,इन्हें हम सिर्फ हम महसूस कर सकते हैं लेकिन इसे छू नहीं सकते हैं,कुछ वाक्यों के द्वारा समझने की प्रयास करते हैं-

श्याम अच्छा लड़का हैं  ।

प्रियंका सूंदर हैं ।   

शिवम् ईमानदार हैं ।

वह खुश हैं ।

हम आशा से प्यार करते हैं ।

जवानी बहुत अच्छा होता हैं ।

बबलू बूढ़ा हो गया हैं ।

ललित उदास हैं ।

पुष्पा दुःखी हैं ।

राधा घमंडी हैं ।

हम तुमसे नफरत करते हैं ।

अभी इनकी  बचपना हैं ।

 

इन सब वाक्यों से समझ गए होंगें की यहाँ हर एक subject कोई-न-कोइ अपना गुण को दर्शाते हैं अतः ये सारे वाक्य भाव वाचक संज्ञा हैं।

 

Sangya ke kitne bhed hai 

 

 

अब व्युत्पत्ति के अनुसार संज्ञा के तीनों भेद को परिभाषा सहित समझते हैं :  

 

 1 रूढ़ संज्ञा- जिस संज्ञा को खंड करने पर उसका अर्थ निरर्थक हो तो वह रूढ़ संज्ञा कहा जाता हैं ।

जैसे –  घर इसको खंड करने पर घ और र मिलता हैं जिसका अलग -अलग कोइ अर्थ नहीं निकलता हैं घ का कोइ सार्थक नहीं निकलता हैं और र का भी कोइ सार्थक अर्थ नहीं निकलता हैं यदि इस प्रकार का कोई भी संज्ञा(नाम ) मिले जिसका खंड निरर्थक हो तो वह रूढ़ संज्ञा कहा जाएगा ।

इसी तरह, कल, चल,  मेज, घास,नमक, पल आदि को रूढ़ संज्ञा हैं जिसका खंड करने पर सार्थक अर्थ नहीं निकलता हैं ।

कल का खंड – क  और  ल जिसका कोइ सार्थक अर्थ नहीं हैं ।

 

चल का खंड – च और ल इसमें च तथा का ल का सार्थक मतलब नहीं निकलता हैं ।

नमक – जिसका तीन खंड हैं न, म और क जिसका सार्थक अर्थ नहीं बनता हैं । अब आप समझ गए होंगें की रूढ़ संज्ञा किसे कहते हैं।

 

 

Sangya ke kitne bhed hai 

 

2 योगिक संज्ञा – जिस संज्ञा को खंड करने पर उसका अलग-अलग अर्थ सार्थक हो तो वह योगिक संज्ञा कहा जाता हैं ।

 

जैसे – विद्यालय , गौशाला, पुस्तकालय आदि ।

विद्यालय को खंड करने पर विद्या + आलय= विद्यालय, जिसमें पहला खंड विद्या और दूसरा खंड आलय, दोनों का सार्थक अर्थ होता हैं विद्या का अर्थ होता हैं विद्या अध्ययन  तथा आलय का अर्थ होता हैं घर मतलब की विद्याध्ययन करने वाला घर जिसे हम पाठशाला भी कहते हैं ।

गौशाला- जिसका खंड करने पर गौ + शाला = गौशाला , पहला खंड गौ का अर्थ  होता हैं गाय तथा शाला का अर्थ होता हैं घर मतलब की गाय के रहने वाला घर ।

पुस्तकालय – पुस्तक + आलय दोनों का अलग – अलग अर्थ निकलता हैं पुस्तक का घर , अब आप योगिक संज्ञा को समझ गए होंगें ।

 

3 योगरूढ़ि जो संज्ञा अपने मूल खण्डों का अर्थ छोड़कर कोइ अलग ही अर्थ दें तो वह योगरूढ़ि संज्ञा कहा जाता हैं।

जैसे – जलज इसका खंड करने पर पहला खंड जल और दूसरा खंड ज हैं, जल का अर्थ होता हैं पानी तथा ज का अर्थ होता हैं जन्मा हुवा मतलब पानी में जन्मा हुवा सेवार, घेंघा , जोंक आदि अर्थात स्पष्ट हैं कि जलज अपना मूल अर्थ नहीं देकर अलग अर्थ ही दिए हैं ।

 

पंकज – इसका खंड पंक और ज हैं पंक का अर्थ होता हैं कीचड़ तथा ज का अर्थ होता हैं जन्मा हुवा अर्थात कमल, अर्थात दोनों का अलग अर्थ ही निकलता हैं। लम्बोदर-लम्ब और उदर,लम्ब का अर्थ बड़ा तथा उदर का अर्थ होता हैं पेट अर्थात श्री गणेश जी इसी प्रकार नीलकंठ,चक्रधर,गिरिधर,कलकंठ आदि सब योगरूढ़ि संज्ञा कहा जाता हैं।

 

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