Sandhi kise kahate hain , ( संधि के परिभाषा भेद एवं उदाहरण व्यख्या सहित ):
आप संधि के बारे में जानना चाहते हैं, क्या आप संधि के परिभाषा ,भेद ,उदाहरण एवं उनके विभिन्न रूपों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस पेज को पूरा पढ़ना होगा क्योंकि इसमें संधि के सम्बंधित हर एक प्रकरण( topic/प्रश्नों ) के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई हैं और आपको हर एक सवाल का जबाब मिल जायेगा ।
परिचय – संधि हिंदी व्याकरण अथवा संस्कृत व्याकरण का वह भाग होता हैं जिसमें दो अत्यंत नजदीकी वर्ण के मिलने से जो नया वर्ण बनता हैं या कोइ विकार उत्पन्न होता हैं उसके बारे में अध्ययन किया जाता हैं इस प्रकार संधि का मतलब योग , जोड़ , मिलाना या मेल होता हैं, जैसे – आ + आ = आ होता हैं परन्तु संधि में यह किसी शब्द के लिए परिभाषित होते हैं वह कैसे किस प्रकार होते हैं इसी के बारे में अध्ययन करेंगें ।
Sandhi kise kahate hai :
संधि किसे कहते हैं / परिभाषा –
दो अन्यंत संयोगी वर्ण के मिलने से जो विकार ( ध्वनि ) उत्पन्न होते हैं वह संधि कहा जाता हैं इस प्रकार जब दो वर्ण आपस में मिलते हैं तो उसमें एक विकार उत्पन्न होता हैं जो संधि कहे जाते हैं और विकार का मतलब रूप में परिवर्तन होना अथवा परिवर्तन होकर किसी नए प्रकार का भाव उत्पन्न करना । कुल मिलकर बात यह हैं की हिंदी व्याकरण के संधि में दो पास-पास की ध्वनिया आपस में मिलते हैं और एक नए प्रकार के ध्वनि का उत्पति होता हैं जिसे सम्पूर्ण रूप से शब्द के आधार पर परिभाषित कर सकते हैं जिसके लिए दो शब्द को आपस में जोड़ते हैं या किसी शब्द का संधि विच्छेद करते हैं इस क्रिया में पहले शब्द के अंतिम ध्वनि तथा दूसरे शब्द के पहला ध्वनि से मिल जाता हैं और एक नए ध्वनि(वर्ण) की उत्पति हो जाती हैं अब हम उदाहरण के द्वारा अच्छा से समझते हैं क्योंकि उदाहरण से ही सम्पूर्ण स्पष्टीकरण हो सकता हैं ।
जैसे – (1) राम + अनुज = रामानुज , यह दो शब्द राम और अनुज से मिलकर बना हैं जिसमें राम के अंतिम वर्ण ‘म’ के अ तथा अनुज का पहला वर्ण भी ‘अ’ मिलकर ‘मा’ बना हैं और दोनों शब्द मिलकर रामानुज बना हैं इस प्रकार रामानुज का संधि विच्छेद हुवा हैं ।
(2) विद्या + आलय = विद्यालय । इसमें दो शब्दों के वर्ण आपस में मिले हैं विद्या के अंतिम ध्वनि ‘आ’तथा आलय के प्रथम ध्वनि ‘आ’ के मिलने से ‘आ‘ ध्वनि बना हैं अर्थात आ + आ = आ हुवा हैं और दोनों शब्द मिलकर विद्यालय बन गया हैं इस प्रकर विद्यालय का संधि विच्छेद भी किया गया हैं यदि कहा जय की विद्यालय का संधि विच्छेद क्या होगा तो इसका जबाब विद्या + आलय होगा।
(ध्यान दें – ध्वनि और वर्ण का एक ही अर्थ होता हैं और दूसरी बात संधि का अध्ययन प्रमुख रूप से किसी शब्द के संधि विच्छेद करने के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता हैं जब भी किसी शब्द का संधि विच्छेद करने जाते हैं तो संधि के नियमों के बारे में स्मरण करना पड़ता हैं और इस स्मरण को मजबूत करने के लिए संधि प्रकरण का अध्ययन बहुत आवश्यक हो जाता हैं।)
इन्हें भी पढ़ें – 1 हिंदी वर्णमाला क्या होता हैं ।
Sandhi kise kahate hain
sandhi ke kitne bhed hote hain :
संधि के भेद / प्रकार :
समान्यतः हिंदी व्याकरण के अनुसार सन्धियाँ तीन प्रकार के होते हैं और संस्कृत में भी तीन ही प्रकार संधि प्रकरण के लिए थोड़ा संस्कृत व्याकरण विशेष महत्पूर्ण होता हैं ।
संधि भेद – (1) स्वर संधि
(2) व्यंजन संधि
(3) विसर्ग संधि ।
व्यख्या –
(1) स्वर संधि – स्वर के साथ स्वर के मिलने से जो विकार उत्पन होता हैं वह स्वर संधि कहा जाता हैं ।
जैसे – देव + आलय = देवालय । इसमें पहला शब्द देव का अंतिम वर्ण ‘व’ में छिपे अ तथा दूसरा शब्द आलय के प्रथम वर्ण आ के मिलने से आ उत्पन्न हुवा हैं जिसमें अ भी एक स्वर वर्ण हैं तथा आ भी स्वर वर्ण हैं दोनों मिलकर आ बन गया हैं मतलब ( अ + आ = आ ) और देवालय का संधि विच्छेद देव + आलय होता हैं । इसीप्रकार
कार्य + आलय = कार्यालय ।
महा + अनुभाव = महानुभाव ।
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी , स्वर संधि हैं ।
(ध्यान दें – हिंदी व्याकरण में स्वर 11 होते हैं जो- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ हैं । )
अब स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं
(i) दीर्घ संधि
(ii) गुण संधि
(iii) वृद्धि संधि
(iv) यन संधि
(v) अयादि संधि ।
Sandhi kise kahate hain
अब हम स्वर संधि के पाँचों भेदों को बारी – बारी से अध्ययन करते हैं ।
(i) दीर्घ संधि- दो समान स्वरों के मिलने से जो नया वर्ण बनते हैं वह दीर्घ कहा जाता हैं अर्थात दो समान स्वर मिलकर दीर्घ हो जाता हैं । जैसे –
अ + अ = आ ( अंग + अंगी = अंगांगी, यहाँ – अंग में ‘अ’ हैं तथा अंगी में भी ‘अ’ हैं दोनों मिलकर ‘आ’ हो गया और इस प्रकार ‘अंगांगी बन गया ) इसीप्रकार निचे भी देखिए ।
आ + आ = आ ( महा + आत्मा = महात्मा , विद्या + आलय = विद्यालय )
इ + इ = ई ( अति + इत = अतीत )
ई + ई = ई ( सती + ईश = सतीश )
उ + उ = ऊ ( सु + उक्ति = सूक्ति )
ऊ + ऊ = ऊ ( भू + ऊषर )
साथ में इनके ओर भी कुछ प्रमुख नियम हैं जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं जो बहुत महत्पूर्ण हैं , वह नियम कुछ इस प्रकार हैं –
नियम (1) यदि ह्रस्व ‘अ’ एवं दीर्घ ‘आ’ के बाद ह्रस्व अ या दीर्घ आये तो दोनों मिलकर ‘आ’ हो जाता हैं ।
जैसे – अ + आ = आ ( रत्न + आकर = रत्नाकर )
आ + अ = आ ( विद्या + अर्थी = विद्यार्थी )
(2) यदि ह्रस्व इ दीर्घ ई के बाद कोइ ह्रस्व इ तथा दीर्घ ई आये तो दोनों मिलकर ई हो जाता हैं ।
जैसे – इ + ई = ई ( गिरि + ईश = गिरीश )
ई + ई = ई( मही + ईश्वर )
( 3) यदि ह्रस्व उ तथा दीर्घ ऊ के बाद कोइ भी ह्रस्व दीर्घ उ एवं ऊ आता हैं तो दोनों मिलकर ऊ हो जाता हैं ।
जैसे – उ + ऊ = ऊ ( लघु + ऊर्मि = लघूर्मि )
ऊ + उ = ऊ ( वधु + उत्सव = वधूत्सव )
(ii) गुण संधि – यदि ‘अ‘ एवं ‘आ‘ के बाद इ, ई, उ , ऊ या ऋ आये तो क्रमशः ए , ओ तथा अर हो जाते हैं ।
(1) अ + इ = ए ( नर + इंद्र = नरेंद्र )
अ + ई = ए ( देव + ईश = देवेश )
आ + इ = ए ( महा + इंद्र = महेंद्र ) और
आ + ई = ए होगा । ( रमा + ईश = रमेश )
(2) अ + उ = ओ ( चंद्र + उदय = चंद्रोदय )
आ + उ = ओ ( महा + उत्स्व = महोत्स्व )
आ + उर्मि = ओ ( गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि )
(3) अ + ऋ = ओ ( देव + ऋषि = देवर्षि )
आ + ऋ = महा + ऋषि = महर्षि )
(iii) वृद्धि संधि – (1) यदि ह्रस्व अ तथा दीर्घ आ के बाद ए या ऐ आये तो दोनों मिलकर ‘ऐ‘ हो जाता हैं । जैसे –
अ + ए = ऐ ( एक + एकम = एकैकम )
अ + ऐ = ऐ ( मत + ऐक्य = मतैक्य )
आ + ऐ = ऐ ( महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य)
आ + ए = ऐ ( तथा + एव = तथैव )
(2) यदि ह्रस्व दीर्घ अ तथा आ के बाद ओ या औ आये तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता हैं ।
अ + ओ = औ ( परम + औषध = परमौषध )
आ + औ = औ ( महा + औषधि = महाऔषधि )
(iv) यन संधि – यदि इ , ई के बाद कोइ भी स्वर आए तो (इ और ई को छोड़कर) इ , ई के स्थान पर य हो जाता हैं और प्रथम पद का अंतिम वर्ण आधा हो जाता हैं ।
दधि + आनाथ = दध्यानय ।( इ के बाद अन्य स्वर वर्ण आ आया हैं और प्रथम पद के अंतिम पद ‘ध’ आधा हो गया हैं तथा इ का य हो गया हैं )
सरस्वती + आज्ञा = सरस्वत्याज्ञा ( इसमें भी ई का य ,प्रथम पद सरस्वती के अंतिम पद त का आधा हो गया हैं और आ स्वर वर्ण हैं )
(v) अयादि संधि – अयादि संधि के नियम जो निम्नलिखित हैं ।
(1) यदि ए , ऐ , ओ , औ के बाद कोइ अन्य कोई स्वर हो तो इनके स्थान पर क्रमशः अय , आय ,अव् और आव् हो जाता हैं । ( ध्यान दें – अय एवं आय में य हलन्त हैं) ।
जैसे –
ए + अ = अय ( ने + अन = नयन )
ऐ + अ = आय ( गै + अक = गायक )
ओ + अ = अव् ( भो + अन = भवन )
औ + उ = आव् ( भौ + उक = भावुक )
अब आगे व्यंजन संधि के बारे में जानते हैं –
(2) व्यंजन संधि- जिन दो ध्वनियों में संधि हो रहा हो उनमें पहला वर्ण व्यंजन हो और दूसरा वर्ण स्वर या व्यंजन हो तो उसे व्यंजन संधि कहा जाता हैं , अर्थात यदि किसी व्यंजन वर्ण के साथ अन्य स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन होता हैं वही व्यंजन संधि कहलाते हैं ।
जैसे – जगत + ईश = जगदीश । इसके पहला शब्द जगत के अंतिम वर्ण ‘त‘ हैं जो की एक व्यंजन वर्ण हैं तथा दूसरा शब्द ईश के प्रथम अक्षर स्वर वर्ण हैं अर्थात त और ई में व्यंजन वर्ण तथा स्वर वर्ण का मेल हुवा हैं ।
दिक् + अम्बर = दिगम्बर । इसमें भी क व्यंजन वर्ण हैं और अन्य स्वर वर्ण के साथ मेल हुवा हैं मतलब क और अ का मेल हुवा हैं , इसप्रकार आप समझ गए होंगें की किसी व्यंजन वर्ण के साथ किसी अन्य स्वर / व्यंजन वर्ण का मेल किस प्रकार होते हैं ।
अब देखना हैं की किसी व्यंजन वर्ण के साथ किसी अन्य स्वर या व्यंजन का मेल कैसे होता हैं इसके लिए कुछ नियम हैं जिसे समझना बहुत जरूरी जो कि निम्नलिखित हैं ।
1 . किसी वर्ग का पहला वर्ग, किसी वर्ग के तीसरे,चौथे अथवा किसी स्वर से मिलकर अपने वर्ग का तीसरा वर्ण बन जाता हैं ।
जैसे – दिक् + गज = दिग्गज । इसमें कवर्ग का पहला वर्ग क हैं किसी अन्य वर्ग ग से मिला हैं जो क वर्ग का तीसरा वर्ण हैं यदि आप को समझ में नहीं आ रहे हैं तो नियमों को बार – बार पढ़ें और उसके भाववार्थ को समझने का कोशिश करें समझ में आ जायेंगें ।
उत + एति = उदेति , इसमें उत में त वर्ग का पहला वर्ण ‘त‘ हैं तथा कोइ अन्य स्वर वर्ण उ हैं और दोनों के मिलने से त वर्ग का तीसरा वर्ग ‘द’ बन गया हैं , एवं ए मात्रा के रूप में सम्मलित हो गए हैं ।
इसीप्रकार – उत + घाटन = उद्घाटन ।
वक् + ईश = वागीश इत्यादि ।
(ध्यान दें – यहाँ पर वर्ग का मतलब हिंदी वर्णमाला के वर्ग से हैं , जैसे – क ख ग ङ को क वर्ग कहा जाता हैं , च छ ज झ ञ को च वर्ग कहा जाता हैं , ट ठ ड ढ ण को ट वर्ग कहा जाता हैं , त थ द ध न को त वर्ग और प फ ब भ म को प वर्ग कहा जाता हैं । )
Sandhi kise kahate hain
2 . किसी वर्ग का पहला वर्ण आगे आने वाले अनुनासिक से मिलकर वर्ग का अनुनासिक बन जाता हैं ।
जैसे – जगत + नाथ = जगन्नाथ ( यहाँ पर त वर्ग का पहला वर्ण त हैं और आगे आने वाले वर्ण न हैं जो आपस में मिलकर अनुनासिक बन गया हैं ।) इसीप्रकार
तत + मय = तन्मय ।
चित + मय = चिन्मय ।
मृत + मय = मृण्मय आदि ।
(ध्यान दें- अनुनासिक क्या हैं तो जिस वर्ण का उच्चारण नाक और मुँह से होता हैं वह अनुनासिक कहा जाता हैं । )
Sandhi kise kahate hain
3 . यदि त के बाद कोई स्वर अथवा ग ,घ, द, ध, ब, भ या य , र , व रहें तो त के स्थान पर द हो जाता हैं ।
जैसे – सत + आचार = सदाचार ( सत के अंतिम वर्ण त हैं और आगे के शब्द के पहला कोइ स्वर वर्ण हैं अतः त का द हो गया हैं और बन गया सदाचार )
इसीतरह – उत + गम = उदगम।
उत + योग = उद्योग ।
उत + यान = उद्यान ।
4 त के बाद छ या श हो तो त के बदले में ‘च’ तथा श के बदले में ‘छ‘ हो जाता हैं ।
जैसे – उत + छेद = उच्छेद ।
उत + शिष्ट = उच्छिष्ट ।
उत + श्वास = उच्छवास ।
उत + धार = उद्धार।
5 . त के बाद ह हो तो त के बदले में ‘द‘ तथा ह के बदले में ‘ध‘ हो जाता हैं ।
जैसे – उत + हत = उद्धत ।
उत + हार = उद्धार ।
तत + तद्धित ।
उत + हरण = उद्धरण ।
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6 . त के पश्चात क , त , प , या स हो तो त संयुक्त हो जाता हैं ।
जैसे – उत + पाद = उत्पाद ।
तत + त्व = तत्त्व ।
तत + काल = तत्काल ।
सत + संग = सत्संग ।
7 किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के पश्चात् किसी वर्ग का पाँचवा वर्ण रहें तो प्रथम वर्ण के बदले में उस वर्ग का पाँचवा वर्ग हो जाता हैं ।
जैसे – उत + नति = उन्नति ।
उत + माद = उन्माद ।
उत + मत = उन्मत ।
8 . ज के बाद न हो तो न के बदले में ज्ञ बन जाता हैं ।
जैसे – यज्ञ + न = यज्ञ
राज + नी = राज्ञी ।
9 . म के पश्चात् किसी वर्ग का कोइ वर्ण हो तो ‘म‘ के बदले में उस वर्ग का पाँचवा वर्ण हो जाता हैं ।
जैसे – परम + तु = परन्तु ।
सम + देह = संदेह ।
सम + धि = संधि ।
शम + कर + शंकर ।
किम + तु = किंतु आदि ।
10 . म के बाद अंतःस्थ या उष्म वर्ण रहे तो म के बदले में अनुस्वार हो जाता हैं ।
जैसे – किम + वा = किंवा ।
सम + वाद = संवाद ।
सम + युक्त = संयुक्त ।
सम + हार = संहार ।
( ध्यान दें – य र ल व को अंतःस्थ वर्ण तथा श ष स और ह को उष्म वर्ण कहा जाता हैं ।)
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11. यदि न् या म् के बाद कोइ स्वर वर्ण रहे तो दोनों मिलकर संयुक्त हो जाता हैं और हलन्त का चिन्ह लुप्त हो जाता हैं ।
जैसे – अन् + अंत = अनंत
सम् + आचार = समाचार
12 . ष के बाद त या य हो तो त के बदले में ट तथा थ के बदले में ठ हो जाता हैं ।
जैसे – कष + त = कष्ट ( ष के बाद त आया हैं और त के बदले में ट हो गया हैं )
दुष + त = दुष्ट ।
13 . मूल या दीर्घ स्वर के पश्चात् छ रहे तो छ के पहले च की वृद्धि हो जाती हैं ।
जैसे – अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छिन = विच्छिन ।
14 . सम् या परि के बाद उपसर्ग या कृ धातु का संयोग हो तो दोनों के मध्य में स् और ष् की वृद्धि हो जाती हैं।
जैसे – सम् + कृत = संस्कृत ( सम् के बाद कृ धातु आया हैं इसलिए स् की वृद्धि हो गए हैं ।)
सम् + कार = संस्कार ।
15 . यदि ऋ , र, ष के परे न रहता हैं और इनके मध्य कोइ स्वर कवर्ग , प वर्ग , अनुस्वार , य , व , ह रहे तो न के स्थान पर ण हो जाता हैं ।
जैसे – ऋ + न = ऋण ।
राम + अयन = रामायण ।
प्र + मान = प्रमाण ।
16 . संस्कृत के यौगिक शब्द के प्रथम शब्द के अंत में यदि न् हो तो उसका लोप हो जाता हैं ।
जैसे – प्राणिन् + मात्र = प्राणिमात्र
राजन् + आज्ञा = राजाज्ञा ।
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अब विसर्ग संधि के बारे में जानते हैं :
(3) विसर्ग संधि – स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण के साथ विसर्ग के मेल से जो विकार उत्पन्न होता हैं उसे विसर्ग संधि कहा जाता हैं ।
जैसे – मनः + हर = मनोहर ।
पयः + द = पयोद ।
सरः + रोज = सरोज ।
मनः + रथ = मनोरथ आदि ।
व्यंजन संधि के भी कुछ नियम हैं जिसकी जानकारी आवश्यक होनी चाहिए ।
1 . यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और उसके आगे घोष व्यंजन अथवा य र ल व हो तो विसर्ग सहित अ का ‘ओ’ हो जाता हैं ।
सरः + वर = सरोवर ।
पुरः + हित = पुरोहित ।
यशः + दा = यशोधा ।
2 . यदि विसर्ग के पहले अ हो और बाद में क ख प फ में कोइ वर्ण हो तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता हैं ।
जैसे – प्रातः + काल = प्रातःकाल ।
रजः + कण = रजःकण ।
3 . यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोइ अन्य स्वर हो और विसर्ग के बाद कोइ भी स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीया , चतुर्थी , पंचम वर्ण , अथवा य र ल व ह हो तो विसर्ग का र हो जाता हैं ।
निः + आधार = निराधार ।
निः + उपाय = निरुपाय ।
दुः + आत्मा = दुरात्मा इत्यादि ।
4 . यदि विसर्ग के पहले इ या उ हो और आगे क, ख, प, फ हो तो विसर्ग का ष हो जाता हैं ।
जैसे – निः + कपट = निष्कपट ।
निः + पाप = निष्पाप ।
निः + फल = निष्फल ।
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5 . यदि विसर्ग के बाद च या छ हो तो विसर्ग का श हो जाता हैं
ट या ठ हो तो ष हो जाता हैं और त या थ हो तो स हो जाता हैं ।
जैसे – निः + चय = निश्चय ।
निः + तार = निस्तार ।
6 . यदि विसर्ग के बाद श , ष या स हो तो विसर्ग का क्रमशः श, ष , स होता हैं या ज्यों – का – त्यों रह जाता हैं ।
जैसे – दुः + शासन = दुःशासन या दुश्शासन
निः + सार = निःसार ।
दुः + साध्य = दुस्साध्य या दुःसाध्य ।
7 . यदि इ या ऊ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद र हो , तो इ का ई , उ का ऊ हो जाता हैं और विसर्ग लुप्त हो जाता हैं ।
जैसे – निः + रोग = निरोग ।
निः + रस= नीरस ।
निः + रज = नीरज आदि ।
8 . यदि विसर्ग के पहले अ हो और उसके बाद कोइ अन्य स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता हैं ।
जैसे – अतः + एव = अतएव ।
इन्हें भी पढ़ें – अव्यय किसे कहते हैं ।