Hindi sentences , (हिंदी वाक्य किसे कहते हैं ? इसका प्रयोग किस प्रकार किया जाता हैं) :
“हिंदी भाषा को बोलने के लिए हिंदी वाक्यों(Sentences) की आवश्यकता होती हैं। आप जब अपने दोस्तों से हिंदी(Hindi) में बातें करते हैं अथवा अन्य किसी व्यक्ति से हिंदी में बातें करना चाहते हैं तो इसके लिए हिंदी वाक्यों (Hindi Sentences) का प्रयोग करना पड़ता हैं।”
- किसी भी तरह के वार्तालाप के लिए , वाक्यों(Sentence) की आवश्यकता होती हैं , चाहे भाषा कोइ भी क्यों न हो । लेकिन वाक्यों का प्रयोग कैसे और किस प्रकार किया जाता हैं , इसे जानना बहुत जरूरी होता हैं , जिसमें शार्थकता एवं शुध्यताओं का ध्यान रखना बहुत आवश्यकत होता हैं , अन्यथा आप वाक्यों का सही प्रयोग नहीं कर पायेंगें ।
- दुनिया के किसी भी भाषा को बोलने के लिए सबसे पहले उनके वर्णमालाओं को सीखना पड़ता हैं , फिर उन वर्णमालों के द्वारा शब्द बनाया जाता हैं , फिर इसके बाद शब्दों के द्वारा वाक्य बनाया जाता हैं।
Hindi Sentences
शब्द क्या हैं – शब्दों का ऐसा शार्थक समूह जिसका कोइ अर्थ निकलता हो , वह शब्द कहलाता हैं। वाक्यों में दो या दो से अधिक शब्दों(Words) को सार्थक रूप से व्यवस्थित किया जाता हैं , उन व्यवस्थित वाक्य के द्वारा ही कोइ कर्ता/Person अपनी भावों को व्यक्त करता हैं , अर्थात अपनी बातों अथवा कथन(Statement) को किसी दूसरे Person(पुरुष) के पास रख पाते हैं।
हिंदी वाक्यों का उदहारण :
- मैं अपना काम समय पर करता हूँ।
- जिंदगी जीना जितना कठिन हैं , उतना आसान भी हैं ।
- हम अपनी गलतियों के कारण कठिनाईयों में घिर जाते हैं ?
- ज्ञान के बिना जीवन बहुत कठिन हैं।
- जो वर्तमान को ठीक लेता हैं , उसका भविष्य खुद अच्छे हो जाते हैं ।
- वह रोज विद्यालय जाता हैं ।
- मैं भोजन करता हूँ ।
- हमलोग कल बाजार गए थे ।
- वह गाना गाती हैं ।
- राधा घर जा रही हैं ।
- दुनिया गोल हैं ।
- यह जंगल हैं ।
- वह वृक्ष हैं ।
- यह सब पक्षी हैं ।
- हमें जीवन में हमेशा मेहनत करते रहना चाहिए , इत्यादि । ये सब वाक्य(Sentence) हैं ।
- ब्रह्माण्ड में तारों का चमकना बहुत अद्भुत लगता हैं ।
- पृथ्वी जीवन की सबसे सूंदर स्थान हैं इसके जैसा कोइ संसार में दुसरा कोई स्थान नहीं ।
- मैं जैसा करते हैं वैसा फल प्राप्त करते हैं ।
- हमें उतना ही पैर फैलाना चाहिए जितनी हमारी क्षमताएँ हैं ।
- हम अपने कर्मों एवं उपलब्ध्ताओं
वाक्य(Sentence) कैसे बनता हैं अथवा वाक्यों का निर्माण कैसे किया जाता हैं ?
“आप ऊपर पढ़ चुके हैं वाक्य शब्दों के शार्थक समूह के मिलने से बनता हैं , जिसमें दो अथवा दो से अधिक शब्द आपस में मिलते हैं।”
जैसे –
मैं किताब पढता हूँ = मैं + किताब + पढता + हूँ । इसमें मैं , किताब , पढता , हूँ चार शब्द हैं । इन चार शब्दों के मिलने से वाक्य बना हैं ।
वह विद्यालय जाती हैं = वह + विद्यालय + जाती + हैं , से हुई हैं ।
मैं घर जाता हूँ = मैं + घर + जाता + हूँ ।
वह एक अच्छी लड़की हैं = वह + एक + अच्छी + लड़की + हैं ।
वेलोग रोज अपने खेतों में काम करते हैं = वेलोग + रोज + अपने + खेतों + में + काम + करते + हैं , इत्यादि। अब आप समझ गए होंगें की वाक्य कैसे बनता हैं ।
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शार्थक वाक्य क्या होता हैं अथवा शार्थकता का अर्थ क्या होता हैं ?
- रमेश मिट्टी से कपड़ा धोता हैं। यह वाक्य शार्थक नहीं हैं क्योंकि मिट्टी से कपड़ा नहीं धोया जा सकता हैं , हाँ यदि ये कहे की रमेश साबुन से कपड़ा धोता हैं तो यह वाक्य शार्थक हैं।
अर्थात वाक्य ऐसे शब्दसमूह/पदसमूह का नाम हैं जिसमें (1) योग्यता (2)आकांक्षा और (3)आसक्ति या सामीप्य ये तीनों वर्तमान रहता हैं । इन्हें स्पष्ट रूप से समझने के लिए तीनों को अलग- अलग समझते हैं जो निम्न हैं।
(1) योग्यता – योग्यता का अर्थ हैं किसी शब्द- विशेष में किसी अर्थ विशेष को वहन करने की योग्यता । अर्थात शब्द और अर्थ के पारस्परिक सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के विरोध का अभाव योग्यता कहलाता हैं।
जैसे –
वह पौधें को आग से सींचते हैं। इस वाक्य के शब्द और अर्थ में परस्पर विरोध हैं , क्योंकि आग से पौधें को सींचा नहीं जा सकता हैं । आग तो जलाने का काम करते हैं सींचने का काम नहीं , अर्थात आग में सींचने की योग्यता नहीं हैं , योग्यता का अभाव हैं , अतः योग्यता के अभाव के कारण यह वाक्य का रूप नहीं ले सकता हैं । यदि आग के जगह पानी रख दिया जाय तो वह सार्थक वाक्य बन जाएगा । वह पौधें को पानी से सिचंता , यह सार्थक वाक्य हैं ।
(2)आकांक्षा- वाक्य के एक शब्द को पढ़कर या सुनकर दूसरे पद(शब्द) को पढ़ने या सुनने की आकांक्षा बनी रहती हैं और जहाँ आकांक्षा की पूर्ति हो जाता हैं तो , वह वाक्य पूरा हो जाता हैं। जब तक आगे सुनने आकांक्षा बनी रहती हैं तब तक वाक्य को पूर्ण नहीं माना जाता हैं ।
जैसे – वह कहना चाहता था कि – – – – – – – – – यदि इतना कह कर वक्ता(Speaker) चुप हो जाता हैं तो इसे पूर्ण वाक्य नहीं माना जाता हैं । क्योंकि सुनने वालो को यह इच्छा बनी रह जाती हैं कि वह आगे क्या कहना चाहता था । यदि ये कहा जाए कि – वह कहना चाहता था कि राजू विद्यालय नहीं गया तो यह वाक्य पूरा हो गया , क्योंकि अब सुनने वाले को पुरे समझ में आ जाएगा कि “राजू के बारे में बता रहे हैं कि वह विद्यालय नहीं गया हैं” , अतः श्रोता को आकांक्षा नहीं हैं ।
(3)आसक्ति या सामीप्य – वाक्य के पदों में स्थान और काल की एकता को आसक्ति कहते हैं। यदि एक पृष्ट में ‘सीता’ और दूसरे पृष्ट में ‘गाती हैं’ तो यह वाक्य नहीं बन सकता हैं।
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वाक्य के अंग –
वाक्य के प्रमुख दो अंग होते हैं (i) कर्ता(Subject) , इसे उद्देश्य भी कहा जाता हैं (ii) कर्म(Object) , इसे विधेय भी कहा जाता हैं । जिसकी व्याख्या निचे की जा रही हैं ।
(i) कर्ता(Subject) – जो कार्य का संपादन करे तो वह कर्ता कहलाता हैं ।
जैसे –
अजय रोटी खाता हैं । इस वाक्य में कार्य का संपादन ‘अजय’ कर रहा हैं । इसलिए ‘अजय’ कर्ता हैं ।
(ii) कर्म(Object) – क्रिया का फल जिस पर पड़ता हैं वह कर्म कहलाता हैं।
जैसे –
- श्याम रोटी खाता हैं । ‘खाना’ क्रिया हैं , जिसका फल रोटी पर पड़ता हैं । यदि पूछा जाए की श्याम क्या खाता हैं तो इसका जबाब होगा की वह ‘रोटी” खाता हैं , इसलिए रोटी कर्म हैं ।
हिंदी वाक्यों के भेद :
वाक्यों के भेदों के लिए , अलग-अलग दृष्टिकोण से समझना पड़ता हैं , जो निम्नलिखित हैं ।
(A) अर्थ के दृष्टिकोण से वाक्य भेद : | (B) क्रिया के दृष्टिकोण से : | (C) रचना के दृष्टिकोण से : |
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व्याख्या : (A)
1 . विधान वाचक वाक्य या स्वीकारात्मक वाक्य – जिस वाक्य से ये पता चलता हैं की , कर्ता कुछ स्वीकार कर रहा हैं तो वह स्वीकारात्मक वाक्य कहा जाता हैं । अथवा जिस वाक्य से किसी बात के होने का बोध हो तो वह विधान वाचक वाक्य कहलाता हैं।
जैसे –
- मैं पढता हूँ ।
- मैं खेलता हूँ ।
- वह हँसती हैं ।
- वेलोग काम करते हैं ।
- मैं खेल चूका हूँ ।
- रमेश घर आया , आदि ।
2 . निषेधवाचक वाक्य – जिस वाक्य से नाकारात्मक भाव वक्त हो तो वह निषेध वाचक वाक्य कहलाता हैं अथवा जिससे किसी बात के न होने का बोध हो तो वह निषेध वाचक वाक्य कहलाता हैं।
जैसे –
- मैं घर नहीं गया ।
- वह नहीं बोला ।
- मैं नहीं पढता हूँ ।
- वेलोग काम नहीं करते हैं ।
- आपलोग पढ़ाई नहीं किए हैं।
- वह नहीं खा चूका हैं ।
- वेलोग घर नहीं आये हैं , आदि ।
3 . आज्ञावाचक वाक्य – जिस वाक्य के द्वारा किसी को आज्ञा देने का भाव व्यक्त हो तो वह आज्ञा वाचक वाक्य कहलाता हैं ।
जैसे –
- आप घर जाओं ।
- झूठ मत बोलो ।
- अपना काम करो , इत्यादि ।
4 . प्रश्नवाचक वाक्य – जिस वाक्य से कोइ प्रश्न पूछा जाए तो वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता हैं ।
जैसे –
- तुम क्या कर रहे हो ?
- आप क्यों खेल रहे हो ?
- तुम कहाँ जा रहे हो ?
- तुम्हारा नाम क्या हैं ?
- वह कैसे गाती हैं ?
- मैं क्यों हँसता हूँ ? इत्यादि ।
Note – प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में प्रश्नवाचक चिन्ह ( ? ) आवश्य लगा होता हैं ।
5 . विस्मयवाचक वाक्य – जिस वाक्य से विस्मय , शोक , हर्ष , आदि का बोध हो तो वह विस्मयवाचक वाक्य कहलाता हैं ।
जैसे –
- अहा ! कितनी सूंदर शाम हैं ।
- राम ! राम ! तुमने क्या किया हैं ।
- ओह ! यह आपको नहीं करना चाहिए था ।
- हाय ! मैं तो बर्बाद हो गया , इत्यादि ।
6 . इच्छा बोधक वाक्य – जिस वाक्य से किसी प्रकार के इच्छा अथवा शुभकामनाओं का बोध हो तो वह इच्छा बोधक वाक्य कहलाता हैं ।
जैसे –
- मुझे अंगूर खाने का मन कर रहा हैं ।
- हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं ।
- तुम प्रथम से उत्तीर्ण होओ ।
7 . संदेह वाचक वाक्य – जिस वाक्य से किसी बात का संदेह प्रकट होता हैं तो उस वाक्य को संदेह वाचक वाक्य कहा जाता हैं ।
जैसे –
- शायद वह कुछ करने वाला हैं।
- शायद वह अच्छे हो जाए ।
- शाम में वर्षा होगी , इत्यादि ।
8 . संकेत वाचक वाक्य – जिस किसी वाक्य से संकेत अथवा शर्त सूचित हो तो वह संकेत वाचक वाक्य कहलाता हैं ।
जैसे –
- यदि आप पढ़ें होते तो पास हो गए होते ।
- यदि आप चाहते हो तो कर सकते हो ।
- वह घर हैं ।
- वह व्यक्ति जा रहा हैं , आदि ।
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व्याख्या (B)
क्रिया के दृष्टिकोण से वाक्य भेद –
1 . कर्त्तृवाच्य – ऐसा वाक्य जिसमें कर्ता और कर्म साधारण अवस्था में रहता हो और क्रिया स्वतंत्र नहीं रहता हो तो वह कर्त्तृवाच्य कहलाता हैं अर्थात इसमें कर्ता की प्रधनताएँ रहती हैं ।
जैसे –
- वह रोटी खाता हैं ।
- मैं किताब पढ़ता हूँ ।
- राधा खाना बनाती हैं , इत्यादि ।
2 . कर्मवाच्य – ऐसे वाक्य जिसमें कर्म के अनुसार क्रिया हो , तो उसे कर्मवाच्य कहा जाता हैं ।
जैसे –
- अजय ने किताब पढ़ी ।
- मैंने खाना खाया ।
- उसने काम किया ।
- काम किया गया , आदि ।
3 . भाववाच्य – जिस वाक्य में क्रिया न तो कर्ता के अनुसार हो और न कर्म के अनुसार हो तो अर्थात क्रिया स्वतंत्र हो तो ऐसे वाक्य को भाव वाचक वाक्य कहा जाता हैं ।
जैसे –
बालकों से उठा नहीं जाता ।
लड़कियों से किया नहीं जाता हैं ।
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व्याख्या (C)
अब रचना के दृष्टिकोण से वाक्य को तीन भागों में विभाजित किया गया हैं । जो (i) साधारण वाक्य (ii) मिश्र वाक्य तथा (iii) संयुक्त वाक्य हैं ।
- जिस वाक्य में एक उद्देश्य तथा एक विधेय रहता हैं वह साधारण वाक्य कहलाता हैं ।
- जिस वाक्य में एक साधारण वाक्य के अतिरिक्त उसके अधीन कोइ दूसरा उपवाक्य हो तो वह मिश्र वाक्य कहलाता हैं ।
- ऐसी वाक्य दो या दो से अधिक प्रधान उपवाक्यों से बनता हो , जो स्वतंत्र रूप से अपना अलग – अलग अर्थ रखता हो अर्थात साधारण एवं मिश्र वाक्यों को संयोजक अव्ययों द्वारा जोड़ा जाए तो उसे संयुक्त वाक्य कहा जाता हैं ।
जैसे –
- वह काम करता हैं । यह साधारण वाक्य है ।
- वह वही लड़का हैं , जो विश्यविद्यालय टॉप किया था । यह मिश्र वाक्य हैं ।
- मैं विद्यालय से घर आ रहा था कि मुझे प्यास लग गई , मैं पानी पिने के लिए एक चापाकल के पास गया और पानी पि कर फिर अपने घर की तरफ चल दिए ।
निष्कर्ष – Hindi sentences हिंदी के वाक्य होते हैं । हम इसका अध्ययन इसलिए करते हैं ताकि हिंदी बोलने की अच्छी शैली बन सके । इस articles में हिंदी वाक्य के सम्बंधित वो सभी जानकारिया दी गई हैं जो हमारे लिए महत्पूर्ण हैं ।