Hindi Essay , (क्या आप निबंध के बारे में जानते हैं की इसे कैसे लिखा जाता हैं) – Hindi Nibandh , Essay In Hindi

Hindi Essay , (क्या आप जानते हैं की निबंध क्या होता हैं ? अथवा लेख क्या होता हैं )

परिचय(Introduction) – आप निबंध(Essay) का नाम सुनते ही सोचते हैं कि हमें किसी विषय पर लिखना हैं लेकिन क्या लिखना हैं इसी का दिक्कत होने लगाती हैं तो अब आपको घबराने की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि निबंध(Essay) कैसे लिखा जाता हैं इसी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं ताकि आप किसी भी Topic( शीर्षक/विषय) पर बहुत ही आसानी से निबंध लिख सकें। किसी परीक्षा में अथवा वर्ग में आपके शिक्षक आपको किसी विषय पर निबंध लिखने के लिए  कहा जाता हैं । इसलिए निबंध लिखने की कला आपको आनी चाहिए आगे इन्ही सब के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां दी जा रही हैं। ध्यान दीजिए निबंध को लेख भी कहा जाता हैं जिसे अंग्रेजी(English) में Essay कहा जाता हैं।

 

 

Nibandh

आपको विभिन्न प्रकार के विषयों पर निबंध लिखकर बताया जाएगा जिससे आपको पता चल जाएगा की निबंध या लेख कैसे लिखा जाता हैं लेकिन इससे पहले आपको कुछ बातों को जानना बहुत जरूरी हैं जो बहुत आवश्यक हैं बाकी आपकी इच्छा पर निर्भर करता हैं। 

 

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निबंध क्या होता हैं अथवा निबंध किसे कहते हैं –  साहित्यिक रूप से निबंध औसत लम्बाई की गद्य में की गई एक ऐसी रचना हैं जिसमें किसी विषय का प्रतिपादन उसी रूप में किया जाता हैं जिस रूप में लेखक को प्रभावित किया हैं । 

व्याख्या – वाचिक(मुँह से बोला हुवा) और लिखित शास्त्रसमूह साहित्य कहलाता हैं , गद्य का अर्थ  कहानी होता हैं , रचना का अर्थ तैयार करना होता हैं और प्रतिपादन का अर्थ भली-भाँति याद कराना अथवा अच्छीतरह से समझाना होता हैं । अर्थात किसी विषय पर निबंध लिखने का मतलब हैं उस विषय के बारे में साहित्यिक रूप से तैयार करके भली- भाति अच्छीतरह से समझाना।  मान लीजिए की आपको होली पर निबंध लिखना हैं तो आप होली के विशेषताओं के साथ- साथ उनके साहित्यिक महत्त्व , उत्पति एवं होली क्यों मनाया जाता हैं इत्यादि के बारे में सभी जानकारी देना होगा। जिसे आगे प्रायोगिक रूप से अध्ययन करेंगें ।

निबंध का परिभाषा – निबंध साहित्यिक रूप से औसत लंबाई की एक ऐसी गद्य रचना हैं जिसमें विचारों एवं भावों को कलात्मक प्रतिपादन किया जाता हैं। 

 

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निबंध के भेद/प्रकार (Types Of Essay) :

स्तर की दृष्टिकोण से इसके निम्नलिखित दो भेद हैं । 

(1) . वस्तुपरक जो विषय जैसा हैं उसे बिनाअपनी निजी दखल के वैसा ही बताना वस्तुपरक कहलाता हैं । इसमें लेखक वूर्वाग्रह एवं  पक्षपात के बिना ही उन विषयों के बारे में लिखते हैं ।

(2) . आत्मपरक या वैयक्तिक – बड़े-बड़े लेखक वैयक्तिक निबंध लिखते हैं। इसमें कोइ लेखक विषय की अच्छाई के बारे में लिखते हैं तो कोइ लेखक उसकी बुराई खोलने में अपनी कला दिखाते हैं या कोइ लेखक व्यंग से उस विषय को उड़ा देते हैं। 

 

शैली की दृष्टिकोण से इनके निम्नलिखित चार भेद हैं :

(1) . वर्णात्मक – इस प्रकार के निबंध में देखी-सुनी वस्तुओं का वर्णन होता हैं , ऐसी निबंधों में गहनता या गहराई नहीं होती हैं । जैसे – नदी , पहाड़ , दीपावली , होली , दुर्गापूजा , छठपूजा , वसंत ऋतू आदि । 

(2) . विवरणात्मक – इस प्रकार के निबंध को कथात्मक निबंध भी कहा जाता हैं। यह निबंध काल्पनिक या वास्तविक दोनों प्रकार के होते हैं । वर्णात्मक निबंध की अपेक्षा विवरणात्मक निबंध में अधिक प्रौढ़ता , रचना , कौशलता एवं कल्पना की आवश्यकता होती हैं । 

(3) . विचारात्मक – इस श्रेणी में चिंतन-प्रधान निबंध आते हैं । इसमें लेखक किसी समस्या पर सुचिंतित सम्मति प्रकट करता हैं। वह विभिन्न विद्वानों के मत , सिंद्धांत आदि को देखकर अपनी मत की पुष्टि करता हैं , विचारों की गहनता के साथ भाषा-शैली भी गंभीर होती हैं और इस प्रकार के निबंधों में दृष्टि आलोचनात्मक होती हैं ।

(4) . भावात्मक – इस प्रकार के निबंधों में भावों की प्रधानता रहती हैं , इसमें बुद्धि के अलावा हृदय को प्रभावित करने का अधिक प्रयास की जाती हैं ।  अतः आप निबंध के कुल छः भेदों को समझ गए होंगें , इसके अतिरिक्त कुछ निबंध साहित्यिक या आलोचनात्मक होते हैं । 

 

 

Hindi Essay  / निबंध कैसे लिखा जाता हैं :

इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण बातो पर ध्यान देना जरूरी हैं जो की निम्नलिखित हैं ।

1 . प्रस्तावना या भूमिका – किसी विषय पर निबंध लिखने के लिए सबसे पहले प्रस्तावना या भूमिका लिखा जाता हैं , जिसमें विषय का अर्थ , उसकी परिभाषा एवं महत्त्व बताया जाता हैं और इसके बाद के अनुच्छेदों में विषयों को विस्तार पूर्वक लिखा जाता हैं और प्रत्येक अनुच्छेदों में परस्पर सम्बन्ध होना चाहिए तथा किसी तथ्य की पुर्नावृति नहीं करनी चाहिए मतलब एक ही बात को बार – बार नहीं लिखना चाहिए। 

2 . विषय विस्तार – इसमें विषयों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारियां दी जाती हैं , विषयों के सम्बन्ध सभी प्रकार के पहलुओं पर ध्यान दिया जाता हैं  और साथ में उसका विवरण दिया जाता हैं। 

3 . उपसंहार – यह निबंध का अंतिम भाग होता हैं इसमें विषयों का सार लिखा जाता हैं जिस विषय पर लेख लिखा गया होता हैं । 

अभी तक आप समझ गए हैं की निबंध क्या हैं और  इसे कैसे लिखा जाता हैं , अब आपको कुछ विषयों पर निबंध लिखकर दिखाने जा रहे हैं जिससे आपको समझ में आ जायेंगें की कोइ भी निबंध कैसे लिखा जाता हैं जो निम्नलिखित हैं। 

 

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  1. महँगाई पर निबंध 
  2. एकता पर निबंध 
  3. मित्रता पर निबंध 
  4. संगती पर निबंध 
  5. स्त्री शिक्षा पर निबंध 
  6. दुर्गापूजा पर निबंध 
  7. समय की महत्त्व पर निबंध 
  8. समाजसेवा पर निबंध 
  9.  पुस्तकालय पर निबंध 

 

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 1 . महँगाई  

मनुष्य को जीने के लिए रोटी कपड़ा मकान के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के वस्तुओं की आवश्यकता होती हैं। जिसमें खाद्य पदार्थ से लेकर दैनिक जीवन में काम आने वाली ढेर सारी वस्तुओं की आवश्यकता होती हैं लेकिन उस आवश्यकता को पूरा करने के लिए जरूरत से ज्यादा धन का व्यय करना पड़े तो जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाता हैं और जीवन को मुश्किल करने वाले का नाम महँगाई हैं जो हमेशा इंसानों की खून चूसने में लगी रहती हैं । जिधर  देखों उधर हर किसी के जिह्वा पर एक चीज का नाम आता हैं वह हैं “महँगाई । व्यक्ति जितना कमाता नहीं हैं उससे कहीं ज्यादा महँगाई लेकर बैठ जाती हैं। 

आज महँगाई से हर कोई परेशान लेकिन जिसको कोइ फर्क नहीं पड़ता हैं वह हैं भ्रष्ट नेता , बड़े-बड़े सेठ, मुनाफाखोर , व्यापारियों , ठेकेदारों , घूसखोर अफसर , तस्करों सब हैं , इन लोगों को छोड़कर बाकी आम जनता महँगाई के जाल में फड़फड़ा रहे हैं न वह मर पा रहे हैं और न वह मर रहे हैं। महँगाई के कारण सामान्य  जन-जीवन को दो  वक्त की रोटी भी नसीब नहीं पाती हैं । तन ढकने के लिए कपड़े और सर छिपाने के लिए छत का सहारा भी महँगाई ने दूभर कर रखा हैं , करोड़ों लोग पशुवत जीवन बिता रहे हैं और आदमी होकर जानवरों से भी बदतर जिंदगी बिता रहे हैं। यदि देखा जाए तो महँगाई आज के जवाने में ही नहीं बल्कि पुराने जवाने में भी देखने को मिलते थे। मुगलों और अंग्रेजों के जवाने में एक रुपया में बीस से पच्चीस सेर अनाज मिल जाते थे तथा पाँच-छः अना में एक गज कपड़े मिल जाते थे लेकिन आज ऐसा हो गया हैं कि आदमी कीमतों के सामने बौना हो गया हैं । 

 

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स्वतंत्रता के पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद के बात करें तो मूल्य वृद्धि में अद्भुत बदलाव आया हैं । द्वितीय विश्ययुद्ध के बाद मूल्यवृद्धि जो विस्तार पकड़ा वह अभी तक पकड़ा हुवा हैं और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा हैं , युद्ध के बाद खाद्यान जैसे मूलभूत वस्तुओं का आभाव हो गया था , उत्पाद युद्धसाधनों की आपूर्ति में व्यय होने लगा । यद्पि सरकार ने राशन कार्ड द्वारा मूल्य – नियंत्रण करना चाहा लेकिन यह तो बढ़ता ही गया । 1947 में सामान्य मूल्य-स्तर 1938-39 के मुकाबले लगभग ढाई गुणा हो गया , यदि भारत की आजादी से लेकर अभी तक की बात की जाए तो मन काँप उठता हैं 1947 में साधारण चावल बारह आने प्रतिसेर मिलता था लेकिन आज वही चावल 30 – 40 रूपये  किलोग्राम  मिल रहा हैं और यदि गेहूँ की बात करें तो ग्यारह आने प्रतिसेर मिलता था लेकिन अभी 2023 में 25 रूपये  किलोग्राम मिल रहा हैं , इसी प्रकार अन्य वस्तुएँ के मूल्यों में भी बहुत सारे अंतर देखने को मिल रहा हैं, जैसे – तेल , साबुन , कपडा , घी , दूध , दही , फल , शब्जी , शिक्षा आदि का मूल्य कई गुणा बढ़ गया हैं  । लेकिन सरकार इस पर चुप्पी लिए बैठें रहती हैं । जब जनता सरकार के खिलाफ बोलती हैं तो सरकार जबाब देती हैं की महँगाई केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे दुनिया में बढ़ी हैं लेकिन सच्चाई तो यह हैं की न इस पर सरकार काम करती  हैं और न अमीर पूँजीवादी लोग इसे कम होने देती हैं । लेकिन बहुत सारे ऐसे भी देश हैं जो महँगाई के तुलना में भारत से अच्छा हैं । यदि महँगाई को रोका नहीं गया तो एक दिन बहुत बड़ा प्रलय ले आएगी जिसमें आम जनता बेमौत मरेगी । 

 

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2 . एकता  पर निबंध 

आप एक पतली लकड़ी के टुकड़े को आसानी से तोड़ सकते हैं लेकिन वही लकड़ी के चार टुकड़े को आप तोड़ नहीं सकते हैं ,  जब लकड़ी का टुकड़ा अकेला था तो आप उसे आसानी से तोड़  दिए लेकिन वही लकड़ी चार हो गए तो उसे आप तोड़ नहीं सके, क्योंकि चारों लकड़ी में एकता था जिस एकता के कारण आप उसे तोड़ नहीं पाए । एकता का अर्थ एक साथ होना होता हैं जिसके सामने बड़े- से -बड़ी शक्ति भी हार कर दम तोड़ देते हैं , और जहा एकता नहीं होता वहा कोइ भी अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेते हैं। एकता के सन्दर्भ में एक बहुत ही अच्छी पंक्ति हैं वह पंक्ति हैं – “एकता ही बल हैं” । जहा एकता नहीं वहा सब कुछ बलहीन होता हैं , कोइ समाज या कोइ व्यक्ति पृथक होकर काम करते हैं उसकी प्रगति संभव नहीं हैं अर्थात यदि प्रगति करना हैं तो एकता परम आवश्यक हैं  इसके लिए सभी को मन कर्म वचन से एक होना अति आवश्यक हैं तभी सफलता संभव हैं। 

एक- एक तिनके से बनाई हुई रस्सी से बड़े-से-बड़े बलशाली को बांधा जा सकता हैं । नन्ही – नन्ही बूंदों की क्या हस्ती होती हैं लेकिन उन्ही बूंदों की समुदाय एक बड़ी नहीं का निर्माण कर लेती हैं , एक छोटी से ईंट की टुकड़ों को कोइ भी ठोकर मारकर चला जाता हैं लेकिन वही ईंट मिलकर दीवार बन जाता हैं तो उसे ठोकर मारना खुद को मारना होता हैं , एक छोटी सी चींटी बहुत कमजोर मालूम पड़ती हैं लेकिन वही एक हो जाती हैं तो बड़े- बड़े जानवर को भी तवाह कर देती हैं , यदि पंक्षी एकता कर ले तो बड़े – से – बड़े जानवर का भी खाल खिंच सकती हैं , और सबसे बड़ी बात हाथ की उंगलियाँ बराबर नहीं होती हैं लेकिन किसी वस्तु को उठाने के लिए सभी ऊँगली को एक साथ आना पड़ता हैं  इस प्रकार स्पष्ट होता हैं की एकता में बहुत बल होती हैं जिसका कोइ तोड़ नहीं होता हैं।

 

इतिहास साक्षी हैं की एकता न होने का कितना बड़ा दुष्परिणाम हो सकता हैं , जिसका सबसे बड़ा उदाहरण ‘महाभारत’  हैं जिसमें आपसी फुट के कारण ही हस्तिनापुर टुकड़ों में बंट गए और इतना भयानक युद्ध हुवा की इसका व्याख्या करना असंभव नहीं हैं, लेकिन इसी महाभारत युद्ध में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण पांडव हैं जो पाँच भाई के एकता के कारण ही इतनी बड़ी कौरव सेना को परास्त होना पड़ा था। रावण भी इतना आसानी से नहीं हारता यदि वह अपने भाई विभीषण को घर से बहार नहीं निकालता । पृथ्वीराज और जयचंद की फुट के कारण ही विदेशी आक्रमणकारियों के कारण भारत गुलाम बना था । अतः परिवार समाज राज्य एवं राष्ट के सुख शांति समृद्धि के लिए एकता का होना बहुत आवश्यक हैं। 

 

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3 . मित्रता 

दुनिया में सबसे बड़ी रिश्ता मित्रता का होता हैं जिसे दोस्ती कहा जाता हैं और जो बुरे वक्त में साथ देता हैं वही सच्चा मित्र होता हैं । मित्रता दो हृदय को बांधने वाली प्रेम की डोर हैं , मनुष्य को जीवन के पथ पर अकेले चलना बहुत मुश्किल होता हैं , इसलिए उसे वैसे व्यक्ति की खोज रहती हैं जो उसको हमेशा साथ दें जिसपर वह अपने विश्वाश की दीवार खड़ा कर सकें। आप घर से निकलकर जहाँ भी जाते हैं वहाँ सबसे पहले मित्रता की आवश्यकता हैं , मित्रता वही जो हर प्यास बुझाये और जिसे पाकर हर प्यास बुझ जाए । 

यदि मित्रता सच्चा हो तो स्वर्ग के जैसे प्रकाश होता हैं , सज्जनों से मित्रता कड़कड़ाती धुप की छाव की तरह होती हैं और सच्चा मित्र वह हैं जो सदा मित्र की भलाई चाहती हैं , जो समय आने पर मित्र के लिए प्राण भी दे दें , जो मित्र अपने मित्र को हर बुड़ाई से रोके और सही मार्ग पर चलने की रास्ता बताये , लेकिन कपटी मित्र हमेशा हानि पहुँचाते हैं  वह  सामने अच्छी – अच्छी बातें करता हैं परन्तु पीठ पीछे वार करते हैं । 

 

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4 . संगती पर निबंध (sangati par nibandh)

संगती का अर्थ साथ होता हैं , जीवन अकेले नहीं कटती हैं किसी का साथ होना बहुत जरूरी हैं , नहीं तो मन विचलित होने लगता हैं , तन  मन की खुशियाँ नहीं मिलती हैं । मनुष्य को किसी का साथ न मिले तो उसका जीवन नीरस और सूना- सूना हो जाता हैं । लेकिन हम किसकी संगती करें और किसकी न करें  यह समझना बहुत जरूरी हैं क्योंकिजैसा संगति होती हैं हम वैसा ही बनते चले जाते हैं , इसलिए यह बहुत विचारणीय प्रश्न हैं। उत्तम मनुष्य की संगती से हमारा जीवन भी उत्तम हो जाता हैं और  हम अपने जीवन में सुख- समृद्धि , सम्मान प्राप्त कर लेते हैं। मनुष्य के संगती के प्रभाव सिर्फ हमर ऊपर ही नहीं बल्कि हमारा प्रभाव भी दूसरे के ऊपर  पड़ता हैं ,दूसरी सबसे बड़ी बात यह हैं की मानव की मस्तिक को समझाना बहुत मुश्किल हैं वह कब किस रंग में ढल जाए कहना मुश्किल होता हैं , लेकिन जो भी संगती का प्रभाव तो मनुष्य के ऊपर पड़ता ही हैं । दुनिया एक प्रकार से देखा-देखी चलती हैं , हम सामने वाले को जैसा देखते हैं हम भी उसका अनुकरण करने लग जाते हैं, यह भी एक प्रकार से संगती हैं क्योंकि हम जैसे परिवेश में रहते हैं वह भी एक प्रकार से हम उनके साथ रहते हैं , तो उसके अनुसार ही अपने जीवन को अनुकूल करते हैं।

सीसा सूर्य के प्रकाश के संगती पाकर खुद भी चमकाने लगता हैं , हिरे के साथ रहने वाले सामान्य पत्थर भी चमकाने लगता हैं उसी प्रकार मनुष्य भी अच्छे संगती पाकर अच्छे हो जाते हैं । इसलिए मनुष्य को हमेशा साधू , महात्माओं , महापुरुषों , ज्ञानियों , विचारवाणियों आदि व्यक्तियों का संगती करना चाहिए  जिससे उसका जीवन अच्छा और शान्ति पूर्ण हो जाता हैं । इसके सन्दर्भ में कबीर साहब कहते हैं – 

                       कबीरा संगती साधू की , हरै और की व्याधि ।

                       संगती बुरी असाधु की , आठौं पहर उपाधि ।

गोस्वामी तुलसीदास ने सुसंगति को स्वर्ग और अपवर्ग से भी महत्पूर्ण माना हैं । सत्संग तो पारसमणि हैं , जिसके कारण बुरे व्यक्ति भी कंचन की तरह मूल्यमान हो जाते हैं । भर्तृहरि जी का कहना हैं कि- सत्संगति बुद्धि की जड़ता नष्ट करती हैं , वाणी को सत्य से चींचती हैं , मान बढ़ाती हैं , चित को प्रसन्नता देती हैं , संसार में यश फैलाती हैं । 

 

वानर-भालुओं को कौन याद रखता हैं , किन्तु , हनुमान , सुग्रीव , जांबवान , अंगद आदि भगवान श्रीमान के संगती पाकर अविस्मरणीय बन गए। इसी प्रकार बीते समय में हजारों लोग गौतम बुद्ध , आचार्य चाणक्य , स्वामी विवेकानंद जी  , रामकृष्ण परमहंस , आदि के संपर्क में आकर अपना जीवन सफल कर लिया हैं । परन्तु लोग कुसंगति में आकर अपना जीवन को बहुत कष्टदायक बना लेते हैं , इसलिए मनुष्य को कभी भी बुरे लोगों की संगती नहीं करना चाहिए । अतः यदि हम लौकिक और पारलौकिक उन्नति चाहते हैं तो संगती के महत्त्व को समझाना पड़ेगा तथा साथ में कुसंगति का भी मूल्यांकन करना पड़ेगा । इसलिए हमें अपने जीवन को हल पल अच्छे संगती में रहकर बिताना चाहिए । 

 

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5 . स्त्री शिक्षा पर निबंध (stri shiksha par nibandh & Hindi Essay)

स्त्री मानव जीवन का ऐसा अंग हैं जिसके बिना जीवन अधूरा हैं , स्त्री का योगदान सर्वोपरि हैं , जिस राज्य समाज में स्त्री की सम्मान नहीं की जाती हैं उसका पतन निश्चित हैं । हमारा भारतवर्ष जहाँ स्त्री की पूजा की जाती हैं और ईश्वर भी वही वास करती हैं। स्त्री कभी माँ के रूप में तो कभी पत्नी के रूप में या कभी बहन के रूप में हमारे जीवन में अहम् भूमिका निभाती हैं जिसके सहायता के बिना जीवन जीना असंभव हैं, लेकिन इनकी शिक्षा की बात की जाए तो इनकी स्तर बहुत निचे हैं। ये तो सभी जानते हैं की शिक्षा के बिना मनुष्य का जीवन उस सूखे वृक्ष के तरह हैं जिसमें न तो कभी फल लग सकता हैं और न वह कभी छाव दे सकती हैं , इसलिए शिक्षा बहुत जरूरी हैं।

 

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जिंदगी की गाड़ी जिन दो चक्कों के सहारे चलता हैं उसमें स्त्री और पुरुष नाम की दो चक्का लगा रहता हैं यदि इनमें एक चक्का कमजोर पड़ जाए तो जिंदगी की गाड़ी वही रूक जाएगी । लेकिन बात आती हैं शिक्षा की तो पुरुष को किसी भी प्रकार के शिक्षा देने में समाज संकोच नहीं करते हैं लेकिन उसी जगह स्त्री को पढ़ाने में जड़ा भी नहीं सोचती हैं , जबकि स्त्री शिक्षा उतना ही आवश्यक हैं जितना जीने के लिए सांसों की आवश्यकता होती हैं । इसलिए स्त्री शिक्षा बहुत जरूरी हैं इनसे ओर ज्यादा संस्कार और सुरुचि का अंकुर पनपता हैं, चरित्र में सुदृढ़ता आती रहती हैं , चिंतन का क्षितिज फैलता तथा विचारों का वैभव निखरता हैं । स्त्री के शिक्षा के आलावा अभी भी बहुत सारी चीजों से वंचित रह गई हैं , ये सब जो हैं सो हैं लेकिन इनका सम्मान भी सही से नहीं किया जाता हैं ।

स्त्री देश के लिए राजनितिक , आर्थिक , तथा सामाजिक जीवन में बहुत बड़ी योगदान दे रही हैं , वह हर स्तिथियों में कदम – से – कदम मिलकर हर वर्ग के साथ चलती हैं, वह किसी से काम नहीं हैं इसलिए स्त्रीशिक्षा पर बड़ी गंभीरता से विचार करना होगा ताकि सामाजिक जीवन को नितांत नूतन रूप दिया जाए । पुरुष का सनातन तर्क रहता हैं की दिन भर का थका – हारा जब वह काम करके घर लौटे तो कोइ मीठी मुस्कानों से उसकी हारी थकान दूर कर दें , वह सिर्फ चारदीवारी में घर के काम करते रहे , लेकिन यह सोच को रोकना होगा उनकी बहुत सारे चीजों का हक दिलाना होगा , स्त्री के रूप में बेटी हो या बहन उसको शिक्षा के लिए आगे बढ़ना होगा ताकि वह खुद और समाज परिवार को आत्मनिर्भर बना सकें । आज दुनिया में स्त्री किसी भी क्षेत्र में काम योगदान नहीं दे रही हैं विज्ञान से नई – नई प्रविधियों में अहम भूमिका प्रदान कर रही हैं , वह पुरुषों के साथ मिलकर बहुत आगे बढ़ रही हैं लेकिन यह सब तभी संभव होगा जब स्त्री को शिक्षित किया जाएगा , अतः शिक्षित होना जरूरी हैं ।

 

 

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6 . दुर्गापूजा पर निबंध (Hindi Essay

दुर्गापूजा या विजयादशमी हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार हैं जिसमें माँ दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती हैं, जिसे नवरात्री के नाम से भी जाना जाता हैं क्योंकि इसमें माता दुर्गा की नौ रूपों की पूजा होती हैं। लोग इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं और अपने खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं । इस पर्व को हर वर्ष भारतवर्ष के अलावा अन्य देशों में भी बड़े ही उल्लास के साथ मनाते हैं । यह शक्ति की देवी हैं , जब सर्दी और वर्षात ऋतू मधुमय आगमन का सन्देश देकर लौट जाते हैं , खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं सर्वत्र स्वच्छता दृष्टिगत होने लगती हैं तब माँ दुर्गा की रंग-बिरंगें भव्य मुर्तिया बनाई जाती हैं, पूजा के लिए मंडप सजाये जाते हैं , जिसमें माता महिसासुर के छाती में बरछा धँसाए हुए रहती हैं और एक पैर कंधें पर रखी रहती हैं , इनके दस हाथ होते हैं तथा दशों हाथों में अस्त्र-शस्त्र से शुशोभित रहती हैं,उनके मस्तक पर रणक्रीड़ा में बिखरे केश रहती हैं,उनके दाएँ भाग में लक्ष्मी और बाएँ भाग में सरस्वती विराजती रहती हैं। लक्ष्मी के दाएँ भाग में गणेश तथा सरस्वती के बाएँ भाग में कार्तिकेय जी विराजमान रहते हैं और इस अवसर पर भव्य मेले का भी आयोजन की जाती हैं। मेले में बड़े-बड़े दुकानें सजाये जाते हैं खेल कूद नाटक नाच तमाशें आदि का आयोजन किया जाता हैं। 

दुर्गापूजा या नवरात्री  में माँ दुर्गा की पूजा अर्चना नौ दिनों तक चलती हैं और दशवाँ दिन दसहरा होता हैं अर्थात 10 दिनों की इस पूजा अर्चना को दसहरा के नाम से भी जाना जाता हैं ।  नवरात्री के पहले दिनों से ही धूम- धाम शुरू हो जाती हैं , लोग खुशियों से झूमने लगते हैं, घर से लेकर माँ दुर्गा के मंदिर तक लोगों की आने जाने की ताँता लगा होता हैं , बड़े – छोटे , बच्चे – बूढ़े , महिलाएँ आदि थाली में मिठाई फूल प्रसाद लेकर माँ के मंदिर जाते हैं , उसके सामने दीपक जलाते हैं , धुप अगरवत्ती के साथ फूल मिठाई प्रसाद आदि चढ़ाते हैं । सभी माँ की प्रार्थना करते हैं , गीत गाते हैं और जीवन के सुख शांति के माँ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । 

दुर्गापूजा क्यों मनाया जाता हैं –  माना जाता हैं की जब राक्षसों की अत्याचार बढ़ने लगे तो , वह लोगों पर अत्याचार करने लगे  जिसमें महिसासुर नाम का राक्षस का असमान्य कृत बहुत ज्यादा बढ़ गए थे , तब इसे खत्म करने के लिए माँ जगदमा दुर्गा का रूप धारण किये और इसके बाद  महिसासुर का अंत  किए  , जो की बुड़ाई पर अच्छाई का जीत थी अतः तभी से दुर्गा पूजा मनाया जाने लगा हैं , जिसमें प्रमुख रूप से माँ दुर्गा की पूजा की जाती हैं , साथ में अन्य देवी देवताओं की भी पूजा अर्चना की जाती हैं। 

 

 

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7 . समय की महत्त्व पर निबंध (Hindi Essay)

समय का महत्त्व के बारे में जितना भी कुछ बताया जाय वह बहुत कम हैं क्योंकि इसकी महत्ता की कोइ कीमत नहीं हैं , 

  इसकी महत्ता की कल्पना सृष्टि में कोइ नहीं कर सकता हैं क्योंकि सृष्टि से पहले भी समय था , समय ही पूजा हैं , समय ही धन हैं और समय की जीवन हैं , समय ही सब कुछ हैं यदि समय नहीं तो कुछ भी नहीं , इसलिए समय का महत्व सर्वोपरि हैं । आज हर एक कार्य समय के अनुसार ही होता हैं , सृष्टि के हर एक घटनाएँ  समय से ही अपना कार्य करती हैं , पृथ्वी सूर्य ग्रहों आदि सब समय पर ही गति करती हैं । प्रकृति का हर कण समय पर जन्म लेती हैं और समय पर उसकी अंत हो जाती हैं । जीवन की हर एक चीजें समय तय करती हैं की उसे कब और कैसे होना हैं , जिसने समय के महत्व को समझ नहीं पाया ,  उसका जीवन पंगु बन कर रह गया और वह जीवन में कुछ नहीं कर पाया । 

संसार की हर एक क्रियाकलाप समय के अनुसार बंधी हुई हैं , यहाँ तक की सूर्य की किरणें भी समय पर निकलती  हैं और वह समय पर अस्त होती हैं। यह जीवन आधार हैं , यदि आप    इसे जरा भी गमाते हैं तो आप बहुत बड़ा इससे आपको बुरा परिणाम मिल सकता हैं । आप कौन हैं , यह जीवन क्या हैं , आपका जन्म हुवा हैं तो आपका अंत भी निश्चित हैं जिसमें ईश्वर द्वारा दी गई प्रत्येक क्षण का बहुत ही मूल्यवान हैं , बहुत बड़ी पूँजी हैं यदि आप इसे गवा दिए तो जीवन का चलना थप हो जाएगा । जो भी करना हैं अभी करना हैं क्योंकि जो समय निकल रहा हैं वह आपस नहीं आने वाले हैं , यहाँ पर कबीर साहब की एक पंक्ति याद आ रही हैं – 

                                  कल करें सो आज कर , आज करें सो अब ।   

                                  पल में परलै होइगा , बहुरि करेगा कब्ब ।।    

समय रूकती नहीं हैं वह चलती रहती हैं जो समय एक बार निकल जाती हैं वह दुबारा लौट कर नहीं आती हैं , धन एवं स्वास्थ्य चला जाता हैं तो उन्हें पुनः प्राप्त किया जा सकता हैं लेकिन समय एक बार चला जाए तो वह आपस नहीं आता हैं । इसलिए हमें ही समय के साथ चलना होता हैं , यह किसी का इंतजार नहीं करती हैं बल्कि हमें इनका इंतजार करना पड़ता हैं , पता नहीं अगले क्षण क्या हो जाएगा यह कोइ नहीं जानता हैं , समय कब किसको मिट्टी और कब किसको सोना बना दे कोइ नहीं समय पाता हैं लेकिन जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करना सही से सीख लेता है उसके लिए जीवन सुखमय बना रहता हैं । अतः वैयक्तिक और सफलतापूर्ण जीवन के लिए एक मात्र उपाय हैं समय का सही सदुपयोग करना , जिससे हमारा जीवन मंगलमय हो जाए , आनंद – ही – आनंद बना रहे । 

 

 

8 . समाजसेवा पर निबंध (Hindi Essay)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं , जिस प्रकार जल एवं वायु के बिना जीवन संभव नहीं हैं उसी प्रकार समाज के बिना जीवन संभव नहीं हैं , समाज मानव जीवन का मूल आधार हैं, यह वह आधार हैं जिस पर सम्पूर्ण मानव जीवन टिका हैं , यदि यह डगमगा जाता हैं तो पुरे मानव जाती तहस नहस हो जाती हैं, उनकी विकाश रुक जाती हैं, वह कोइ ऐसा काम नहीं कर पाती हैं जिससे समाज एवं राज्य का कल्याण हो। जब हमारे लिए समाज इतना जरूरी हैं तो इनकी सेवा उतना भी जरूरी हैं। यदि इनकी सुरक्षा सेवा पर ध्यान नहीं दिया जाए तो समाज बिलकुल पंगु बन जाती हैं और जब समाज पंगु बन जाती हैं तो मानव जीवन भी किसी काम का नहीं रहती है , उसमें विभिन्न प्रकार के असमानता आ जाती हैं जिसके बाद उस समाज का प्राकृतिक पतन होने लग जाती हैं। मानव सेवा ही सच्चा धर्म हैं और जहाँ समाज सेवा हो वहाँ मानव सेवा खुद-व-खुद हो जाती हैं।

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समाज सेवा का अर्थ समाज में होने वाली असमानताओं , बुड़ाईयों आदि को रोकना होता हैं , उसके विकाश के लिए अच्छे-से-अच्छे कदम उठाने की आवश्यकता होती हैं तथा छोटे – बड़े हर एक पहलुओं पर ध्यान देना होता हैं। समाज में बहुत सारे ऐसी चीजें होती हैं जिसके सहारे समाज सुखी संपन रहती हैं और वह विकाश के शिखर पर पहुँच पाती हैं , जिसमें समाज के हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में जैसे शिक्षा, रोजगार , सामाजिक कार्य , एकता , समानता आदि में अपना योगदान जरूर देती हैं और इसके प्रति कार्य करना हर व्यक्ति का कर्तव्य होता हैं जिस दिन इसमें त्रुटि आती हैं उस दिन से समाज निचे जाने लगती हैं । समाज सेवा करने के लिए बहुत अलग से बहुत कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती हैं, बस हमें अच्छे कर्म करने की आवश्यकता होती हैं क्योंकि अच्छे कर्तव्य ही सच्चा धर्म हैं और जहाँ धर्म हैं वह सब कुछ खुद स्थापित हो जाती हैं । मानव समाज में हर एक व्यक्ति का पहला कर्तव्य  होता हैं की सबसे पहले वह शिक्षा पर ध्यान दें , इसलिए की जहाँ शिक्षा का स्थान होता हैं वहाँ की तरक्की अपने आप होने लगती हैं जो समाज सेवा करने की सबसे पहला भूमिका होती हैं , इसके अलाव समाज के लिए अच्छा रोजगार स्थापित करना , सभी को सामान अधिकार देना , किसी भी स्थिति में एक दूसरे का सहायता करना , भूखें प्यासें को खाना देना , हर किसी के अधिकारों का सम्मान करना समाज सेवा हैं , अतः मनुष्य के लिए समाज जरूरी हैं तो उसकी सेवा भी परम जरूरी हैं ।

 

9 .  पुस्तकालय पर निबंध(Hindi Essay)

पुस्तकालय का अर्थ पुस्तक का घर होता हैं यदि हम पुस्तकालय को विच्छेद करें तो पुस्तक + आलय = पुस्तकालय होता हैं, लेकिन इसका मतलब पुस्तक का गौदाम नहीं होता हैं। पुस्तकालय विश्य के चिंतन का स्थाई केंद्र हैं , यह एक ऐसी विद्या मंदिर हैं जिस मंदिर में बैठकर हर तरह का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।  हम जब अपने विद्यालय में होते हैं तो बहुत सारे किताबें अपने विद्यालय के पुस्तकालय से ले आते थे और पढ़कर पुनः पुस्तकालय में जमा कर देते थे ताकि उस किताब को दूसरा व्यक्ति अध्ययन कर सके। हर एक विद्यालयों अथवा महाविद्यालों में एक पुस्तकालय आवश्य होता हैं जिसमें अनेकों प्रकार के उपयोगी पुस्तकें उपलब्ध होती हैं , जब दिल करता गुरु जी से कहकर पुस्तकें ले आते हैं। यदि आप किताबें खरीदने के लिए बाजार जाते हैं तो शायद वह वह किताबों नहीं मिल पति हैं जो आप ढूढ़ना चाहते हैं लेकिन पुस्तकालय में सभी तरह के पुस्तक उपलब्ध होते हैं । पुस्तकालय हमारे लिए बहुत सहायक होते हैं , खासकर गरीब छात्रों के लिए क्योंकि किताब खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते हैं लेकिन वह पुस्तकालय से किताबें लेकर बहुत आसानी से पढ़ाई पूरा कर लेते हैं । 

हम यह तो भली-भाँती जानते हैं कि संसार में अनेकों प्रकार के पुस्तकें हैं और न जाने रोज कितने प्रकर के किताबें छपते हैं जिसमें धार्मिक से लेकर अन्य कई प्रकार के पुस्तकें शामिल हैं , जिसे आप इतनी आसानी से कहीं भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं , यदि कोइ अति प्राचीन पुस्तकें हो तो वह तो बाजारों में मिलना असंभव होता हैं लेकिन पुस्तकालय में यह सारे पुस्तकें उपलब्ध रहती हैं , इसलिए तो इसका नाम पुस्तकालय हैं । 

पुस्तकालय के कुछ प्रकार भी हैं जैसे विद्यालय पुस्तकालय , सार्वजनिक पुस्तकालय , संस्थागत पुस्तकालय , वैयक्तिक पुस्तकालय , राजकीय पुस्तकालय , राष्ट्रिय पुस्तकालय , चलंत पुस्तकालय । विद्यालय पुस्तकालय विद्यालय के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए रहता हैं जिसमें बाहरी लोगों के लिए प्रतिबंधित रहते हैं , वही सार्वजनिक पुस्तकालय सभी लोगों  के लिए खुला रहता हैं , जबकि संस्थागत पुस्तकालय संस्थाओं से सम्बन्ध व्यक्तियों के लिए होता हैं। वैयक्तिक पुस्तकालय विद्याव्यसनी के वैयक्तिक उपयोग के लिए होता हैं , जैसे आप अच्छे पढ़ें लिखें लोगों के पास पहुंचते हैं तो उसके पास भी कई तरह से पुस्तकों का संग्रह किए रहते हैं , जो उनके और अन्य व्यक्तियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अलावा अन्य प्रकार के पुस्तकालय का भी वही महत्त्व हैं जिसमें हमें सभी तरह के पुस्तकें मिल जाते हैं , पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए हमें कुछ शुल्क भी देना होता हैं लेकिन यह हर जगह लागू नहीं होता हैं। 

 

Hindi Essay

 

जिस प्रकार मंदिर में प्रवेश करने पर नास्तिक का भी मन भगवान के प्रति सम्पूर्ण झुक जाता हैं, उसी प्रकार पुस्तकालय में प्रवेश करते हैं पुस्तकों के प्रति मन झुक जाते हैं उसका अध्ययन करने लगते हैं और उसका ज्ञान हमें प्राप्त हो जाता हैं। वैसे तो पुस्तकालय में अध्ययन करने से लेकर अन्य सारे प्रकार कि व्यवस्था रहती हैं , जिससे पुस्तकों का अध्ययन करने में कोइ दिक्कत नहीं होती हैं। पुस्तकालय वह सागर हैं जहाँ भिन्न – भिन्न दिशाओं से ज्ञानसरिताएँ आकर मिलती हैं । युग – युग कि प्रतिभाओं ने जो अपनी साधना के दीप जलाएँ हैं उनका पूँजीभूत प्रकाश यही पुस्तकालय में मिल जाता हैं । आप चाहे तो वेदों , महापुराणों , महाग्रंथों , आप चाहों तो  अन्य प्रकार के कई ज्ञान कि सागर में डूब सकते हैं , जो सारे चींजें पुस्तकालयों में प्राप्त किया जा सकता हैं , इसके साथ  साहित्य दर्शन , मनोविज्ञान , इतिहास , समाजशास्त्र , अर्थशास्त्र , राजनीतिकशास्त्र आदि कई तरह के पुस्तकें आप प्राप्त कर सकते हैं । किन्तु हमारे देश में पुस्तकालयों कि बड़ी उपेक्षा हैं जोकि बड़ी ही दुःखद और चिंता का विषय हैं , इस पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता हैं और पुस्तकों को उपलब्धता करना बहुत जरूरी हैं लेकिन इस पर क्रमबद्ध तरोकों से कोइ काम नहीं करते हैं जो अत्यंत जरूरी हैं। 

 

 

 

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